पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अफगान, तुर्क, मुगल आए जो विभिन्न प्रदेशों के रहने वाले थे, वे अपने साथ कुछ खान-पान की आदतें, कुछ पहनने के कपड़ों का ढंग, कुछ पूजा विधान, कुछ विचार व काम करने के नए तरीके भी लेकर आए, जिनका भारतीय समाज पर गहरा असर पड़ा । कितनी ही खाने की वस्तुएं व पकाने का ढंग, इस तरह यहां के जीवन में शामिल हो गई कि कोई यह नहीं कह सकता कि ये बाहर की चीजें हैं, वे यहां के लोगों के जीवन का हिस्सा ही बन गई । संस्कृति जड़ वस्तु नहीं होती और न यह स्थिर रहती है, बल्कि यह हमेशा परिवर्तनशील है। जब दो संस्कृतियां मिलती हैं तो समाज विकास करता है और संस्कृति समृद्ध होती है। दो संस्कृतियों के मिलन से नए बदलाव होते हैं, जिससे किसी देश या समुदाय की संस्कृति में कुछ नया जुड़ जाता है और कुछ पुराना पीछे छूट जाता है। भारत की संस्कृति विविधतापूर्ण संस्कृति है। इसमें विभिन्न धर्मों, जातियों, सम्प्रदायों, विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले लोग रहते हैं। यहां कई संस्कृतियों के लोग आकर बसे और एक दूसरे का परस्पर जो प्रभाव पड़ा उसके कारण यहां की संस्कृति बहुत ही खूबसूरत बन गई है। यहां बाहर के कई क्षेत्रों से कई जातियों के लोग जैसे हूण, शक कुषाण, अफगान, पठान, मंगोल, तुर्क आदि आए। इनकी संस्कृति अलग-अलग थी । ये हिन्दुस्तान में आए और संस्कृतियों का मिश्रण हुआ और इन्होंनें एक दूसरे को प्रभावित किया। यहां के लोगों ने इनसे काफी कुछ सीखा और वहां से आए लोगों ने यहां के लोगों से काफी कुछ सीखा। दोनों ने एक दूसरे को गहरे से प्रभावित किया। इस प्रभाव से एक नई किस्म की संस्कृति का निर्माण हुआ। एक ऐसी संस्कृति का जन्म हुआ जिसमें दोनों धर्मों की संकीर्णताओं को छोड़कर, दोनों धर्मों में व्याप्त मानवता और उदारता के बिन्दुओं को लिया गया। इसमें बहुत से संतों- सूफियों का योगदान है। जब से मुसलमान यहां आए तभी से इस बात के उदाहरण मिलते हैं। बाबा फरीद, निजामुद्दीन औलिया, जो कभी सत्ता के दरबार में नहीं गए और माना कि पूजा की उतनी ही विधियां हैं जितने कि रेत के कण । अमीर खुसरो ने हिंदी को अपनी भाषा माना और हिन्दुस्तान की तुलना स्वर्ग के बगीचे से की। कबीरदास ने दोनों धर्मों की कट्टरता और बाहरी दिखावे को बेकार की चीज मानते हुए आचरण की पवित्रता पर जोर दिया और अल्लाह और ईश्वर में कोई अन्तर नहीं माना। गुरु नानक ने सभी धर्मों के पवित्र माने जाने वाले तीर्थों की यात्राएं कीं और व्याप्त आडम्बरों का विरोध करते हुए मानव एकता संदेश दिया और लंगर- संगत की ऐसी परम्पराएं शुरू कीं जिनसे वास्तव में मानव में एकता स्थापित हो सके। बुल्लेशाह, जायसी ने यहां की लोककथाओं को आधार बनाकर काव्य रचना की और यहां की लोकरीतियों को गहराई से समझा। रसखान को किसी भी कृष्णभक्त कवि से कम नहीं माना जा सकता, श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति 32 / साम्प्रदायिकता