पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/३३

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में कुछ परम्पराएं ऐसी शुरू हुई, जो केवल हिन्दुस्तान में ही हैं— जैसे ताजिये निकालने की परम्परा भारत के अलावा और कहीं नहीं है। यह यहां का ही प्रभाव है। 'बिस्मिल्लाह' और 'अकीका' जैसे संस्कार यहां का प्रभाव हैं। यहां के लोगों ने मुसलमानों से बहुत कुछ सीखा। सिक्ख धर्म को देखा जा सकता है। सिक्ख धर्म में गुरुद्वारों के ढांचे में मीनारों और गुम्बदों का प्रयोग ईरानी वास्तुकला का प्रभाव है। सिर्फ ढांचे में ही नहीं बल्कि दार्शनिक स्तर पर एकेश्वरवाद का अपनाया जाना और सिर पर कपड़ा रखकर पूजा करने की पद्धति भी मुसलमानी प्रभाव है। इस तरह एक-दूसरे को बहुत अधिक प्रभावित किया है। इससे एक नई संस्कृति ने जन्म लिया। जिसमें सभी के रीति-रिवाज शामिल थे, आज तक यह सीखने-सिखाने की परम्परा जारी है और इसी पद्धति से किसी देश का विकास होता है।' जब पवित्र या शुद्ध-संस्कृति जैसी चीज ही नहीं है 'फिर हमारी समझ में नहीं आता कि वह कौन सी संस्कृति है, जिसकी रक्षा के लिए सांप्रदायिकता इतना जोर बांध रही है। वास्तव में संस्कृति की पुकार केवल ढोंग है, निरा पाखंड और इसके जन्मदाता भी वही लोग हैं, जो साम्प्रदायिकता की शीतल छाया में बैठे विहार करते हैं। यह सीधे-सादे आदमियों को साम्प्रदायिकता की ओर घसीट लाने का केवल एक मंत्र है और कुछ नहीं । हिन्दू और मुस्लिम संस्कृति के रक्षक वही महानुभाव और वही समुदाय हैं, जिनको अपने ऊपर, अपने देशवासियों के ऊपर, सत्य के ऊपर कोई भरोसा नहीं, इसलिए अनंत तक ऐसी शक्ति की जरूरत समझते हैं, जो उनके झगड़ों में सरपंच का काम करती है। " संस्कृति लगातार निर्मित होती है। सामाजिक स्थितियों के बदलने के साथ-साथ मनुष्य की रुचियों में, स्वभाव में, रहन-सहन व खान-पान में परिवर्तन आता है, यानी कि संस्कृति बदलती है। जब संस्कृति परिवर्तनशील है तो साम्प्रदायिक शक्तियां रक्षा किसकी करना चाहती हैं? जब एक संस्कृति के लोग दूसरी संस्कृति के लोगों के संपर्क में आते हैं तो वे एक-दूसरे से सीखते हैं और इस प्रक्रिया में संस्कृति का विकास होता है। राष्ट्र - कवि व संस्कृति चिन्तक रामधारी सिंह दिनकर ने 'संस्कृति के चार अध्याय में हिन्दू और मुस्लिम के संदर्भ में इसके अनेक उदाहरण दिए हैं और दिखाया है कि एक-दूसरे से समाज ने बहुत कुछ ग्रहण किया है । संदर्भ 1. जातीयता, जातिवाद और साम्प्रदायिकता; वासुदेव शर्मा ( सं . ); पृ.- 45 लोकजतन प्रकाशन, भोपाल; 2004 2. नाजीवाद: जर्मनी के तानाशाह हिटलर के राजनीतिक दल का नाम जनीतिक विचारधारा था नात्सी । इससे नाजीवाद शब्द बना है। हिटलर 34 / साम्प्रदायिकता