पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/३५

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धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता दोनों राजनीतिक शब्द हैं और लगभग एक दूसरे के विरोधी हैं। इसलिए साम्प्रदायिकता का सबसे बड़ा हमला धर्मनिरपेक्षता पर ही होता है। कभी धर्मनिरपेक्षता की खिल्ली उड़ाकर इसको कमज़ोर करते हैं तो कभी धर्मनिरपेक्ष लोगों को छद्म-धर्मनिरपेक्ष कहकर इसकी स्वीकार्यता पर प्रहार करते हैं इसलिए धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता के अन्तःसंबंधों को समझना निहायत जरूरी है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य के मामलों में, राजनीति के मामलों में और अन्य गैर-धार्मिक मामलों से धर्म को दूर रखा जाए और सरकारें व प्रशासन धर्म के आधार पर किसी नागरिक से किसी प्रकार का भेदभाव न किया जाए। राज्य में सभी धर्मों के लोगों को बिना किसी पक्षपात के विकास के समान अवसर मिलें । साम्प्रदायिक शक्तियां धर्मनिरपेक्षता को लेकर भ्रम फैलाने की कोशिश करती हैं कि धर्म को जीवन के किसी पहलू से दूर नहीं किया जा सकता और बिना धर्म को शामिल किए राजनीति नीतिपूर्ण-मूल्यपरक नहीं रहेगी। यहां यही समझने की जरूरत है कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ किसी के धर्म का विरोध करना नहीं है, बल्कि सबको अपने धार्मिक विश्वासों व मान्यताओं को पूरी आजादी से निभाने की छूट है। धर्मनिरपेक्षता में धर्म व्यक्ति का नितान्त निजी मामला माना है। जिसे राजनीति में या सार्वजनिक जीवन में दखल नहीं देना चाहिए और इसी तरह राज्य भी धर्म के मामले में तब तक दखल न दे जब तक कि विभिन्न धर्मों के आपस में टकराने की स्थिति न आये या राज्य की मूल धारणा से नहीं टकराते । धर्मनिरपेक्ष राज्य में उस व्यक्ति का भी सम्मान रहता है जो किसी भी धर्म को नहीं मानता । धर्म की निरपेक्षता पर विचार करते हुए प्रख्यात इतिहासकार विपन चन्द्रा ने लिखा कि 'दूसरी जगहों की तरह भारत मे भी धर्म निरपेक्षता की चार तरह से व्याख्या की गई है। पहलीः धर्म को राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। धर्म राजनीति, अर्थव्यवस्था, शिक्षा तथा सामाजिक जीवन और संस्कृति के बड़े क्षेत्रें से अलग रहना चाहिए । धर्म व्यक्ति का निजी या व्यक्तिगत मामला समझा जाना चाहिए। इसे अस्वीकार करने वाली धर्मनिरपेक्षता की तथाकथित भारतीय परिभाषा की बात करना धर्मनिरपेक्षता का निषेध है। साथ 36 / साम्प्रदायिकता