पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/३७

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भारत में अनेक धर्मो को मानने वाले, अनेक भाषाएं बोलने वाले लोग रहते हैं। भारत में हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, फारसी, जैन, बौद्ध आदि सभी धर्मों के लोग रहते हैं। 'धार्मिक बहुलता भारतीय समाज की विशेषता है। प्रख्यात समाज अर्थशास्त्री नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत अमर्त्य सेन ने इस पर विचार करते हुए कहा कि ' धार्मिक बहुलता के मसले का संबंध सिर्फ हिन्दुओं और अन्य धर्मों को मानने वालों (या किसी भी धर्म को न मानने वालों) के बीच के रिश्तों तक ही सीमित नहीं हैं। इसका संबंध खुद हिन्दू धर्म के भीतर मौजूद विविधताओं से भी है। अगर हिंदू धर्म को हम एक धर्म के रूप में देखें, तो उसे ऐसे धर्म के रूप में देखना होगा, जिसका ढांचा पूरी तरह बहुलतावादी है। उसके दायरे में आने वाले विभाजन सिर्फ जाति के विभाजन नहीं हैं (हालांकि ये विभाजन भी बहुत महत्वपूर्ण हैं), बल्कि चिंतन-पद्धतियों के भी विभाजन हैं। दर्शन के छः सम्प्रदायों का प्राचीन हिंदू वर्गीकरण तक अत्यंत विविधतापूर्ण विश्वासों और तर्क- पद्धतियों की मौजूदगी स्वीकार करता है। अपेक्षाकृत काफी बाद में, चौदहवीं शताब्दी में जब हिंदू विद्वान, मैसूर की शृंगेरी पीठ के प्रमुख, माधवाचार्य ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ के सोलह अध्यायों में से हरेक में हिंदू धार्मिक सिद्धांतों के अलग-अलग सम्प्रदायों (चार्वाक मत के नास्तिकवाद से शुरू कर) का विवरण दिया था और इस पर विचार किया था कि किस तरह इनमें से हरेक धार्मिक संप्रदाय, हिंदू चिंतन के दायरे में दूसरों से भिन्न था।2 धर्मनिरपेक्षता असल में समाज की इस बहुलतापूर्ण पहचान की स्वीकृति है, जो अलग-अलग धार्मिक विश्वास रखने वाले, अलग- अलग भाषाएं बोलने वाले समुदायों व अलग-अलग सामाजिक आचार- व्यवहार को रेखांकित करती है और इन बहुलताओं, विविधताओं व भिन्नताओं के सह-अस्तित्व को स्वीकार करती है, जिनमें परस्पर सहिष्णुता का भाव विद्यमान है। भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान इसमें भाग ले रहे राष्ट्रीय नेताओं ने धर्म को राजनीति से अलग रखने की बात की। महात्मा गांधी भी धर्म को व्यक्ति का निजी मामला मानते थे और राष्ट्रीय व राजनीतिक मामलों में धर्म के हस्तक्षेप को अवांछनीय बताया। गांधी जी ने अपने भाषणों व लेखों में इस बात को बार बार दोहराया । 'धर्म हर व्यक्ति का निजी मामला है। उसका राजनीति या राष्ट्रीय मामलों के साथ घालमेल नहीं किया जाना चाहिए। 3 ...' धर्म राष्ट्रीयता की कसौटी नहीं है बल्कि मनुष्य और ईश्वर के बीच निजी मामला है'"...' सभी राष्ट्रवादी धर्म को राजनीति से न मिलाएं। सभी धर्मनिरपेक्ष मामलों में वे सबसे पहले और सबसे अंत में भारतीय हैं। धर्म सम्बंधित व्यक्ति का निजी मामला है। 5 38 / साम्प्रदायिकता