पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/४५

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पाकिस्तान के फौजी-मुल्ला गठजोड़ शासन से लगाया जा सकता है। कमाल की बात तो यह है कि साम्प्रदायिक लोग हमेशा इन्हीं देशों को आदर्श मानकर 'हिन्दू राष्ट्र' बनाने का तर्क देते हैं और जोर देकर कहते हैं कि जब पाकिस्तान इस्लाम के आधार पर बना है तो भारत हिन्दू राष्ट्र होना चाहिए । यह बात उनके जेहन से बाहर होती है कि पाकिस्तान के मुस्लिम राष्ट्र ने अपनी मुस्लिम जनता के लिए कौन से गुल खिला दिए हैं ? नेपाल हिन्दू राष्ट्र है तो क्या नेपाल हमारे लिए आदर्श हो सकता है? कभी नहीं । साम्प्रदायिक शक्तियों द्वारा कथित धर्म के आधार बने राष्ट्र में और राष्ट्रवाद में सभी लोगों के लिए समानता की भावना नहीं होती। वे एक विशेष समूह के वर्चस्व की वकालत करते हैं जिससे समाज में कभी भी शांति स्थापित नहीं हो सकती। किसी भी राष्ट्र की शांति व एकता के लिए जरूरी है कि उसमें रहने वाले सभी समुदायों व वर्गों को विकास के उचित अवसर मिलें व सबमें बराबरी की भावना विकसित हो। धर्म, जाति, भाषा या अन्य किसी कारण से किसी के साथ भेदभाव करना राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल तो है ही मानवीय - गरिमा के प्रतिकूल भी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक गुरु गोलवलकर ने 'वी आर अवर नेशनहुड डिफाइंड' में इसे बताया कि 'हिन्दुस्तान में विदेशी नस्लों को हिन्दू-संस्कृति तथा भाषा को अपनाना होगा, हिन्दू धर्म का आदर करना तथा उसके सामने सिर झुकाना सीखना होगा, हिन्दू धर्म व संस्कृति यानी हिन्दू- राष्ट्र के अधीन ही हो कर वे रह सकते हैं। उनका कोई दावा नहीं होगा। कोई विशेषाधिकार नहीं होंगे और कोई अतिरिक्त सुविधाएं हासिल करना तो दूर रहा, नागरिकों के अधिकार तक नहीं होंगे। उनके लिए और कोई रास्ता नहीं है और न ही होना चाहिए। हमारा एक प्राचीन राष्ट्र है और हमें अपने यहाँ बसे विदेशियों से वैसे ही व्यवहार करना चाहिए, जैसे प्राचीन राष्ट्र करते हैं ।' साम्प्रदायिक शक्तियां 'राष्ट्र' की समर्थक कभी नहीं रहीं इसलिए अपने राष्ट्रवादी होने के लगातार ढ़ोल पीटे जाने के बावजूद भी जनता उनको इस रूप में स्वीकार नहीं करती, इसलिए वे स्वयं को राष्ट्रवाद के बजाय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का समर्थक बताती हैं। यदि पूछा जाए कि यह 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद' क्या है और इसमें किस संस्कृति की बात हो रही है तो उनका साम्प्रदायिक, पुरुष-प्रधान व सवर्ण-वर्चस्व के हावी होने की बात स्पष्ट हो जाती है। आज भी साम्प्रदायिक शक्तियां साम्राज्यवाद के आगे घुटने टेकती हैं। जब वे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के माध्यम से साम्राज्यवादी शोषण व लूट के लिए पलकें बिछाती हैं तो अपने को राष्ट्रवादी कैसे कह सकती हैं। भारतीय इतिहास, परम्परा व समाज में धर्म के आधार पर राष्ट्र निर्माण के तत्व मौजूद नहीं हैं बल्कि भारतीय इतिहास व परम्पराओं में मिली-जुली 46 / साम्प्रदायिकता