पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/४६

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संस्कृति व धर्म की परम्पराएं फली - फूली हैं। धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र निर्माण क सशक्त परम्पराएं यहां मौजूद रही हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता समाज- अर्थशास्त्र अमर्त्य सेन ने इस पर विचार करते हुए लिखा कि 'हिन्दुओं और मुसलमाने के 'दो राष्ट्र' होने के विचार का, भारतीय साहित्य और संस्कृति में शायद ही कोई आधार खोजा जा सकता है। समकालीन भारतीय विरासत में इस्लामी प्रभाव, हिन्दू और अन्य परम्पराओं से घुले-मिले हुए हैं, जैसा कि साहित्य, संगीत, चित्रकला, वास्तुकला और दूसरे अनेक क्षेत्रों में बड़ी आसानी से देखा जा सकता है। सवाल सिर्फ इतना नहीं है कि भारतीय संस्कृति में मुस्लिम लेखकों, संगीतकारों, चित्रकारों आदि ने इतने सारे और इतने बड़े-बड़े योगदान किये हैं, बल्कि सवाल यह भी है कि उनकी कृतियां हिन्दुओं की कृतियों के साथ पूरी तरह घुली - मिली हुई हैं। सच तो यह है कि इस्लामी विचारों और मूल्यों के संपर्क में आने से, हिन्दू धार्मिक विश्वासों और आचारों पर भी जबर्दस्त असर पड़ा था हिन्दू राष्ट्रवाद के विचार को चलाने के लिए, भारतीय मुसलमानों की भारतीयता को कम करके पेश किया जाता है 1 लेकिन, वास्तव में इस तरह का दृष्टिकोण अपनाये जाने का कोई भी तर्कसंगत आधार नहीं है- -न नस्ली, न राजनीतिक, न ऐतिहासिक, न सांस्कृतिक और - न साहित्यिक | 3 जब राष्ट्रवादी शक्तियां कमजोर पड़ती हैं तो साम्प्रदायिक शक्तियां स्वयं को राष्ट्रवादी घोषित करके उनका स्थान लेने की कोशिश करती हैं और कई बार कामयाब भी हो जाती हैं। भारत में आतंकवाद व अलगाव की समस्या ने जोर पकड़ा। असम, पंजाब और काश्मीर में अलगाववादी शक्तियों ने राष्ट्रीय एकता के सामने खतरा पैदा कर दिया तो साम्प्रदायिक शक्तियों को एक नया आधार मिला और उन्होंने 'धर्म खतरे में है' की तरह 'देश खतरे में है' का नारा लगाना शुरू किया और इस बात को इतना उछाला कि वे सबसे बड़े राष्ट्रवादी नजर आएं। इस बात ने लोगों में इनकी प्रतिष्ठा को बढ़ाया। साम्प्रदायिक शक्तियां हमेशा युद्ध का और युद्वोन्माद का समर्थन करती हैं, सेना और परमाणु विस्फोट समेत आधुनिक हथियारों के भंडारण की वकालत करती हैं और पड़ोसी देश पर हमला करने के लिए अखबारों, समाचारपत्रों में बयान व टिप्पणी देती रहती हैं जिससे वे जनता की नजरों में राष्ट्रवादी बनी रह सकें । ध्यान देने योग्य बात है कि ऐसे 'राष्ट्र' की परिकल्पना में आम जनता व उसके हित शामिल नहीं होते। साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद के व राष्ट्र की जनता के हित परस्पर विपरीत हो जाते हैं। पाकिस्तान ने धर्म को महत्व दिया और उसमें आज तक तीन 'अ' का शासन है यानी आर्मी, अल्लाह, अमेरिका । राष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता / 47 ....