पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/४८

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साम्प्रदायिकता और साम्प्रदायिक हिंसा साम्प्रदायिक हिंसा का साम्प्रदायिकता से गहरा ताल्लुक होते हुए भी दोनों एक नहीं हैं। साम्प्रदायिकता की विचारधारा या साम्प्रदायिक चेतना साम्प्रदायिक हिंसा का कारण बनती है तो साम्प्रदायिक हिंसा साम्प्रदायिकता या साम्प्रदायिक चेतना को बढ़ावा देती है। साम्प्रदायिक हिंसा तो साम्प्रदायिक विचारधारा- चेतना की अत्यधिक सघन अभिव्यक्ति है। साम्प्रदायिक हिंसा अचानक नहीं होती बल्कि साम्प्रदायिक शक्तियों की पूर्व योजना का परिणाम होती हैं, बिना साम्प्रदायिक विचारधारा के प्रचार-प्रसार के साम्प्रदायिक हिंसा नहीं पनप सकती। साम्प्रदायिक हिंसा व दंगे साम्प्रदायिकता का कारण नहीं बल्कि परिणाम होते हैं और हिंसा व दंगों की सघनता व प्रसार से इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है कि साम्प्रदायिक विचारधारा लोगों में कितनी गहरे तक घर कर गई है। हाँ यह बात बिल्कुल सही है कि जब साम्प्रदायिक हिंसा व दंगे होते हैं तो साम्प्रदायिक शक्तियां खुले आम अपना खूनी खेल खेलती हैं और साम्प्रदायिक चेतना के प्रसार में साम्प्रदायिक हिंसा बहुत बड़ी भूमिका अदा करती है । साम्प्रदायिक हिंसा और साम्प्रदायिकता से निपटने के तरीके भी अलग- अलग हैं। साम्प्रदायिकता के खिलाफलड़ाई तो विचारधारात्मक लड़ाई है और दूरगामी प्रक्रिया है। जिसमें सरकार के साथ-साथ समाज में मौजूद धर्मनिरपेक्ष व साम्प्रदायिक सद्भाव चाहने वाली ताकतों को मिलकर लड़ने की जरूरत है साम्प्रदायिकता के खिलाफ विचारधारात्मक संघर्ष की आवश्यकता है। साम्प्रदायिकता की राजनीति समाज, अर्थव्यवस्था, धर्म या अन्य सामाजिक मुद्दों पर क्या विचार प्रकट करती है। उसके आक्रामक मिथ्या प्रचार को सही संदर्भ में सही तथ्यों व तर्कों के साथ प्रस्तुत करके ही उसके जहर से बचा जा सकता है, लेकिन साम्प्रदायिक हिंसा तो एक आपात स्थिति की तरह है जिस पर तत्काल काबू पाया जाना निहायत जरूरी है और इसमें सबसे बड़ी भूमिका राज्य-तंत्र ही निभा सकता है। यदि राज्य तंत्र चाहे तो साम्प्रदायिक हिंसा पर तुरन्त नियंत्रण किया जा सकता है, लेकिन यदि राज्य तंत्र न चाहे तो यह बहुत लम्बी खिंच जाती है। पश्चिम बंगाल का उदाहरण लिया जा सकता है क्योंकि वहां की वामपंथी राज्य सरकार साम्प्रदायिकता को रोकने के लिए साम्प्रदायिकता और साम्प्रदायिक हिसां / 49