पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/४९

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कटिबद्ध है तो वहां असल में तो हिंसा भड़कती नहीं, यदि भड़कती है तो उसे तुरन्त दबा दिया जाता है। दूसरी तरफ मुम्बई का उदाहरण है जहां दिसम्बर 1992 व जनवरी 1993 में लम्बे समय तक हिंसा जारी रही क्योंकि राज्य सरकार की हिंसा को रोकने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और जब राज्य सरकार ने हिंसा रोकने की इच्छा शक्ति जाहिर की तो दंगों पर काबू पा लिया गया। 2002 मे गुजरात की मोदी सरकार के रवैये को देखा जा सकता है। यहां सरकार ने न तो हिंसा को रोका, न उदासीन रही, बल्कि सरकारी मशीनरी का सहारा लेकर दंगों को भड़काने में मदद की। इस तरह कहा जा सकता है कि राजनीतिक इच्छा शक्ति के बिना साम्प्रदायिक हिंसा रोकना असंभव नहीं, तो बहुत कठिन कार्य है। बिहार का उदाहरण लिया जा सकता है। लालू प्रसाद यादव ने पंन्द्रह सालों तक शासन किया, जिस दौरान बिहार राज्य में प्रशासन ने की हालत बहुत खराब रही, आमतौर पर अपराध व हिंसा, छीना-झपटी की घटनाएं दूसरे राज्यों से अधिक हुईं । पर वहां इन वर्षों में साम्प्रदायिक दंगे नहीं भड़के। दूसरी बातों में लालू प्रसाद की चाहे जितनी भी कोई आलोचना - निंदा कर सकते हैं, लेकिन साम्प्रदायिक दंगे न होने देने के लिए वे कटिबद्ध रहे। राजनीतिक इच्छा शक्ति का होना हिंसा पर काबू पाने के लिए निहायत जरूरी है। दूसरी प्रशासन की समझदारी व चुस्ती पर भी दंगों को व हिंसा पर काबू पाना काफी कुछ निर्भर करता है। यदि कोई प्रशासनिक अधिकारी दंगों पर काबू पाना चाहता है तो वह स्थानीय निवासियों की मदद लेकर ऐसा कर सकता है लेकिन यदि किसी में यह प्रतिबद्धता ही नहीं है तो वह परिस्थितियों का दास बन जाता है और उसकी कमजोरी व प्रशासनिक अकुशलता का लाभ उठाकर साम्प्रदायिक शक्तियां अपना उल्लू सीधा करती हैं। साम्प्रदायिक हिंसा व दंगों के दौरान साम्प्रदायिक शक्तियां तरह-तरह की योजनाएं बनाती हैं और हिंसा को भड़काने के लिए प्रयासरत रहती हैं। इसके लिए अफवाहें फैलाई जाती हैं। ऐसी अफवाहें फैलाई जाती हैं जिससे कि लोग डर जाएं, शक का वातावरण बन जाए और भावनात्मक रूप से उत्तेजित हों। ऐसी अफवाहें आम होती हैं कि अमुक समुदाय / सम्प्रदाय के लोगों ने 'पानी मे जहर मिला दिया', 'दूध में जहर मिला दिया', 'महिलाओं से बलात्कार किया' उनकी 'छाती काटकर चौराहे पर सजा दी', 'अमुक सम्प्रदाय के लोग एक जगह इकट्ठा' हो गये हैं', 'उनके पास तरह-तरह के हथियार हैं' और 'वे हमला करने आ रहे हैं।' इस तरह आम लोगों के मन में दशहत और डर पैदा करके उनकी सोचने-समझने की शक्ति को लगभग समाप्त कर दिया जाता है। ऐसी अफवाहें फैलाकर लोगों का इतना डरा दिया जाता है कि वे रात-रात भर सो नहीं पाते, जागते रहते है, बेचैन होते हैं। इस उत्तेजना की 50 / साम्प्रदायिकता