पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/५०

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हालत में, अपने गुस्से और नफरत को निकालने के लिए उनको एक शिकार चाहिए और वे हिंसा में शामिल हो जाते है । जब व्यक्ति एक बार हिंसा की कार्रवाई में शामिल हो जाता है तो उसको प्रतिक्रिया का डर पैदा हो जाता है। प्रतिक्रिया का यह डर उसकी हिंसा को औचित्य प्रदान करता है । हिंसा का यह दुष्चक्र है। आम लोगों की चेतना पर डर इतना छा जाता है कि वे साम्प्रदायिक लोगों के आगे समर्पण कर देते हैं और उन्हें अपना रक्षक मान लेते हैं। अपनी सुरक्षा के बदले में इन साम्प्रदायिकों को धन भी देते हैं जिसका प्रयोग और हिंसा फैलाने में किया जाता है। हिंसा की अपनी भाषा होती है जिसे साम्प्रदायिक शक्तियाँ खूब प्रयोग करती हैं और हिंसा के दौरान समाचार पत्र भी इसकी गिरफत में आ जाते हैं। 'दुश्मनों को नानी याद दिला दी', 'मां का दूध' याद करवा दिया आदि भावनात्मक भाषा का प्रयोग किया जाता है। पूरी योजना के तहत ऐसे लोगों को हतोत्साहित किया जाता है, जो ताकत की, शौर्य की भाषा नहीं बोलता। जो शांति की, सद्भाव की बात करता है उसे 'कायर' 'चूड़ी पहनकर बैठ जाओ' कहकर अपमानित करके अलग-थलग करने की कोशिश करते हैं इसलिए साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान औरतें, बच्चे, बूढ़े और विकलांग सबसे आसान निशाना होते हैं और यही इस हिंसा का शिकार अधिक होते हैं । साम्प्रदायिक हिंसा साम्प्रदायिकता की विचारधारा को बढ़ावा देती है, इसलिए साम्प्रदायिक शक्तियां हिंसा को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह के आयोजन करती हैं। ऐसे देवताओं की छवियां लोगों के सामने प्रस्तुत करती हैं जो हिंसा के लिए विख्यात हैं जैसे काली देवी को शक्ति की देवी के तौर पर प्रतिष्ठित किया जाता है । त्रिशूल और तलवार बांटने के भव्य उत्सव आयोजित किए जाते हैं। साम्प्रदायिक शक्तियां हिंसा का बाकायदा प्रशिक्षण प्रदान करती हैं। असगर अली इंजीनियर ने साम्प्रदायिक दंगों के कारणों पर विचार करते हुए मुख्यतः दो श्रेणियों में विभाजित किया है। एक सामान्य कारण, दूसरे विशिष्ट कारण । सामान्य कारण विचारधारात्मक होते हैं, जिनका फैलाव राष्ट्रीय स्तर तक होता है। सामान्य कारणों में समाज का असमान विकास व सीमित संसाधनों का होना मुख्य है। अल्पविकसित समाज में असमान विकास से अन्तर- सामुदायिक वर्गों का विकास नहीं हो पाता । कम विकसित समुदाय के उच्च वर्ग में तथा अपेक्षाकृत विकसित समुदाय के उच्च वर्ग में प्रतिस्पर्धा की भावना जन्म लेती है। उच्चवर्ग अपनी शक्ति बढाने के लिए अपने समुदाय के लोगों का समर्थन जुटाने के लिए अपने आर्थिक विकास की मांगों • को धार्मिक-साम्प्रदायिक ढंग से उठाता है। इतिहास का मिथकीकरण करके, साम्प्रदायिकता और साम्प्रदायिक हिसां / 51