पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/५१

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अतीत का गौरवगान करके तथा दूसरे समुदाय के प्रति नफरत फैलाकर साम्प्रदायिक चेतना का निर्माण करता है। असमान विकास के नकारात्मक प्रभाव के कारण असुरक्षा महसूस करते समुदाय को धर्म मनोवैज्ञानिक राहत प्रदान करता है, जिससे कि वह अंधविश्वास, रूढ़ियों व पिछड़ेपन में फंस जाता है और साम्प्रदायिक तत्त्वों की चपेट में आ जाता है। किसी कस्बे विशेष में साम्प्रदायिक तनाव, कुछ स्थानीय मुद्दों को लेकर होता है। साम्प्रदायिकता के सिद्धान्त पर विचार करने वाले अक्सर इन स्थानीय मुद्दों के महत्त्व को अनदेखा करते हैं, इन स्थानीय कारणों को हम विशिष्ट कारण कहते हैं। साम्प्रदायिक हिंसा के कई मामलों में स्थानीय कारणों ने मुख्य भूमिका निभाई है। स्वतन्त्रता - पूर्व समय में स्थानीय मुद्दे, मस्जिद के सामने संगीत बजाने और गौ-हत्या तक सीमित थे, यद्यपि इन्होंने अभी भी अपनी वैधता नहीं खोई, लेकिन बदली सामाजिक-आर्थिक स्थिति में साम्प्रदायिक परिदृश्य पर नए कारण भी उभरे हैं। इनमें दो सम्प्रदायों के व्यापारी या छोटे निर्माताओं के बीच प्रतिद्वन्द्विता, तस्करी, अवैध हथियार, शराब या इसी तरह की अन्य समाज विरोधी गतिविधियों में शामिल दो गिरोहों के बीच प्रतिस्पर्धा, स्थानीय औद्योगिक रईसों द्वारा कुछ साम्प्रदायिक मुद्दे उभारकर ट्रेड यूनियनों को कमजोर करने की योजना, स्थानीय निकायों या विधान-सभाओं या संसदीय सीटों के चुनाव आदि मुख्य हैं। 1981 में बिहार शरीफ में मुस्लिम कब्रिस्तान की कुछ जमीन थी जो बेकार पड़ी थी । वहां आलू की खेती खूब होती थी। कोल्ड स्टोर के बनने से जमीनों की कीमतें बहुत बढ़ीं। इस जमीन को लेकर स्थानीय यादवों और मुसलमानों में दंगा भड़क गया । इसी तरह गोधरा में गांछी मुसलमानों व सिन्धियों के बीच ट्रांसपोर्ट के व्यापार को लेकर प्रतिस्पर्धा थी और रेलवे- स्टेशन रोड पर साथ-साथ खोखे (दुकान) बनाने का विवाद साम्प्रदायिक दंगों में परिवर्तित हो गया। अलीगढ़ में ताला - उद्योग और मुरादाबाद में तांबा- उद्योग की प्रतिस्पर्धा के कारण साम्प्रदायिक तनाव हुआ। साम्प्रदायिकता के सिद्धान्त को विकसित करने के लिए साम्प्रदायिक स्थिति की कुछ स्थानीय विशेषताओं को समझना जरूरी है। अधिकांश दंगे मध्यम आकार के कस्बों में (क्योंकि ऐसे शहरों में छोटे दुकानदार अक्सर रूढ़िवादी होते हैं और साम्प्रदायिक प्रभाव की ओर उनका झुकाव रहता है) होते हैं। जिन कस्बों में मुस्लिम आबादी 20 से 50 प्रतिशत होती है वे अत्यधिक दंगा संवेदन क्षेत्र हैं। जिन कस्बों में मुसलमान व्यापारी वर्ग के रूप में होता है और वह हिन्दू व्यापारी वर्ग के एकाधिकार को चुनौती देता है वे कस्बे साम्प्रदायिक दंगों की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। इसके 52 / साम्प्रदायिकता