पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/६९

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असल में अब 'गो-प्रेम' गांव से नहीं, बल्कि शहरों से शुरू हुआ है। ऐसे लोगों का गो-प्रेम अचानक छलक पड़ा है जिन्होंने कभी गाय नहीं पाली। इन शहरी नव- गो-प्रेमियों में शायद ही किसी के घर गाय हो । यह सभी गो-भक्त भैंसों का पौष्टिक दूध पीना पसंद करते हैं। लेकिन लोगों की हत्या करने के लिए गाय को अपनी 'माता' बनाने से नहीं चूकते। इन चिकने-चुपड़े शहरियों का दिल नहीं पसीजता जब 'गो-माता' गलियों में कूड़े के ढेर से सब्जियों के गले सड़े छिलके, कागज और पॉलीथीन खाकर, पेट भरने पर मजबूर होती है। 'गो-मूत्र' व 'गो-गोबर' की महिमा बखान करने वाले 'गो-प्रेमियों' के घर के सामने भी यदि 'गो-माता' गोबर या मूत्र कर दे, तो उसके प्रति दुत्कार का व्यवहार, खोखले गो-प्रेम को उजागर कर देता है। उसका पाखंड उसके चेहरे पर बैठ जाता है। 'गो-मूत्र' व 'गो-गोबर' की क्रांति करने वाले ये गो-सैनिक, अपने चमकदार फर्श पर गोमूत्र का पोंछा क्यों नहीं लगाते? अपनी मैली आत्मा या शरीर को साफ करने के लिए, गो- गोबर और गो-मूत्र मल-मलकर क्यों नहीं नहाते? यह उपदेश दूसरों के लिए है या उनको पिछड़े बनाए रखने के षडयंत्र का ही हिस्सा है। इनका गो-प्रेम नकारात्मक गो-प्रेम है जैसे कुछ अंध-राष्ट्र और भाषा प्रेमी, अपने राष्ट्र की सेवा करने या मजबूत करने के लिए कुछ नहीं करते और दूसरे राष्ट्रों के प्रति घृणा का जहर उगलते हैं, यही उनका देश प्रेम है। इसी तरह भाषा प्रेमी भी अपनी भाषा के विकास के लिए कुछ नहीं करते। हां, दूसरी भाषाओं को कोसने में उनका भाषा प्रेम उमड़ आता है। यह राष्ट्रप्रेम या भाषा प्रेम नहीं है, बल्कि दूसरों के प्रति नफरत है जो राष्ट्र व भाषा प्रेम की आड़ लेकर उजागर होती है । इन 'गो-भक्तों' का ‘गो-प्रेम’ नकारात्मक है। गाय की स्थिति सुधारने के लिए उसकी दशा पर गंभीर विचार करने में तो वह उजागर नहीं होता, लेकिन यह दलितों व मुसलमानों के प्रति जो मन की गहराई में बैठी हुई नफरत है, उसे उजागर करने का बहाना मात्र है। दूसरों की हत्या व अपमान करने में यह निकलता I असल में गाय के नाम पर राजनीति करने वालों के लिए ऐसे मौके ही उपयुक्त हैं, जहां वे अपने 'गो-प्रेम' को प्रदर्शित करके पूरा फायदा उठा सकते हैं। इनको एक विवाद चाहिए, एक मुद्दा चाहिए, जिसके माध्यम से अपनी घृणा व्यक्त की जा सके और समाज में तनाव पैदा किया जा सके। इनकी राजनीति के लिए जिंदा गाय के बजाए मरी हुई गाय अधिक उपयोगी है। मरी हुई गायों व अन्य पशुओं की खाल उतारकर, कुछ गरीब परिवारों के पेट तो पलते हैं। इन अमीर गो-भक्तों की राजनीति की दुकान भी मरी 70 / साम्प्रदायिकता