पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/७०

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हुई गायों के सहारे चलती है। समाज में तनाव, उन्माद, घृणा व भेद बढ़ता है, जो इनकी राजनीति का आधार है। सोचने की बात यह है कि भारतीय समाज में गाय का मुद्दा अचानक तेजी क्यों पकड़ने लगा ? साम्प्रदायिक शक्तियों की राजनीति के लिए अब क्या देवताओं की छवियां लोगों को उत्तेजित नहीं कर पा रही हैं? बाबरी मस्जिद गिराने के बाद, अब राम का नाम लोगों की भावनाओं को नहीं भड़का सकता और मथुरा की बात उठाना उनको अभी उचित नहीं लगता क्योंकि इनका प्रभाव एक विशेष क्षेत्र में ही होगा। अन्य क्षेत्रों के लिए एक अन्य मुद्दे की जरूरत है। हरियाणा जैसे क्षेत्र में, गाय के नाम पर लोगों को अपने पीछे लगाया जा सकता है। हरियाणा में ग्रामीण जनता का राजनीति में पूरा हस्तक्षेप है। यहां गाय के नाम पर ग्रामीण अंचल के लोगों को उन्मादी भीड़ में आसानी से बदला जा सकता है। शायद इसके महत्व को देखते हुए ही, इस मुद्दे को भुनाने के लिए 'साधु-संतों' और 'गो-भक्तों' ने हरियाणा पर धावा बोल दिया है। यहां आकर गो-प्रेम के पुराख्यान सुनाकर लोगों में ‘गो-प्रेम' के नाम पर दूसरे धर्मों के प्रति नफरत फैलाने का काम भी जारी है, ताकि मौका मिलते ही इसे बड़े कांड़ों का रूप दिया जा सके। ‘गो-प्रेम' को प्रचारित करने की इस मुहिम में सरकारी हाथ भी है। यह स्वतः स्फूर्त नहीं है, बल्कि इसके पीछे सरकारी प्रेरणा एवं धन काम कर रहा है। जून 1998 में केन्द्र सरकार ( वाजपेयी) ने 'सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय' के अन्तर्गत 'भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड' का गठन किया, जिसका करोड़ों रुपयों का बजट है। इसका अध्यक्ष जस्टिस श्री गुमानमल लोढ़ा को बनाया गया । गुमानमल लोढ़ा 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' द्वारा संचालित 'गोरक्षा आन्दोलन समिति, 'अखिल भारतीय गोरक्षा संघ' व 'गो हत्या एवं मांस निर्यात निरोध परिषद' के मुख्य कार्यकर्ता रहे हैं। गौर करने की बात है कि इन्हीं के माध्यम से 1966-67 में आर. एस. एस. ने गो-रक्षा के नाम पर पूरे देश में बावेला मचाया था और अपनी राजनीतिक शक्ति में काफी इजाफा किया था । सन 2001 में कांची के शंकराचार्य ने 'गो-हत्या' के नाम पर आमरण अनशन की धमकी दी। सरकार ने श्री गुमानमल लोढ़ा की देखरेख में 'राष्ट्रीय मवेशी आयोग' बना दिया। जुलाई 2002 में इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसने अपनी रिपोर्ट में गाय से सम्बन्धित मामले को समवर्ती सूची में लाकर केन्द्रीय कानून बनाने, गो-रक्षा के लिए अलग मंत्रालय स्थापित करने, अनुदान बढ़ाने की सिफारिश की । इस आयोग ने आतंकवाद निरोधक कानून 'पोटा' में सुधार करके गोहत्या को इसके गाय- प्रेम और साम्प्रदायिकता / 71