पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/७

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दंगे और हिंसा भारतीय समाज के अनिवार्य लक्षण की तरह बन गये हैं। छोटे-मोटे गांव-गली के झगड़े व सामान्य-सी घटनाएं भी भीषण साम्प्रदायिक दंगों का रूप धारण कर भयंकर तबाही लाने में समर्थ हो जाते हैं । यह सब अचानक नहीं होता, बल्कि इसके पीछे निहित आर्थिक व राजनीतिक स्वार्थ जुड़े होते हैं, जिनको पूरा करने के लिए दंगे भड़काए जाते हैं। दंगा भड़काने के लिए लगातार तैयारी की जाती है, अनुकूल अवसर पर इसे अंजाम दिया जाता है। जब साम्प्रदायिक हिंसा व दंगे होते हैं तो साम्प्रदायिक शक्तियां खुले आम अपना खूनी खेल खेलती हैं और इस प्रकार साम्प्रदायिक चेतना के प्रसार में साम्प्रदायिक हिंसा बहुत बड़ी भूमिका अदा करती है । साम्प्रदायिकता हमेशा उच्च वर्ग के हितों की सेवा करने का औजार रही है। समाज के सामान्य लोगों के दुख-दर्दों से साम्प्रदायिकता का कोई लेना-देना नहीं है। अपने ही सम्प्रदाय के बीच अशिक्षा, गरीबी, कुपोषण, अंध - विश्वास, बेकारी, भ्रूण हत्या, स्त्री-विरोधी पुरातन मानसिकता, जातिगत ऊंच-नीच की अमानवीय प्रथा के प्रति कभी आवाज नहीं उठाई जाती क्योंकि साम्प्रदायिक दृष्टि में ये समस्याएं ही नहीं हैं। साम्प्रदायिकता के लिए गरीबी समस्या नहीं है बल्कि गरीब समस्या है, उन्हें मैनेज करना इसका उद्देश्य है। साम्प्रदायिकता की राजनीति को समझने के लिए उसकी विचारधारा को समझना पूर्व शर्त है। इसी बात को ध्यान में रखकर इस पुस्तिका की रचना की गई है। यदि इस कार्य में यह जरा भी मदद करती है तो मेरा उद्देश्य सफल होगा। - मैं कुरूक्षेत्र के साथियों का आभारी हूं जिन्होंनें इस काम में सदा हौसला बढ़ाया व समय-समय पर अमूल्य सुझाव दिए हैं— विशेषकर श्री ओम सिंह अशफाक जिन्होनें प्रारूप पढ़कर गलतियां भी दूर कीं, रविन्द्र गासो, ओमप्रकाश, चन्दी, विक्रम मित्तल और राजवीर पाराशर का । मैं विपुला के प्रति भी धन्यवाद करना अपना कर्तव्य समझता हूं, उनके सहयोग के बिना तो इसके बारे में सोचना भी मुश्किल होता । 8 / साम्प्रदायिकता -डॉ. सुभाष चन्द्र