पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अन्तर्गत लाने और किसानों को ट्रैक्टर पर मिलने वाली सब्सिडी समाप्त करने जैसी हास्यास्पद सिफारिशें भी कीं। इन सिफारिशों में नीयत स्पष्ट है कि गाय को संवेदनशील मुद्दा बनाकर प्रस्तुत किया जाए। जहां के किसानों व ग्रामीणों में मन्दिर व देवताओं की प्रतिमाएं साम्प्रदायिक उन्माद पैदा नहीं करती वहां इसके माध्यम से अल्पसंख्यकों व दलित विरोधी दुष्प्रचार करके उनका साम्प्रदायिकरण किया जा सकता है। ग्रामीण किसानों के मन में अन्य पशुओं के मुकाबले गाय का सम्मान अधिक है, वे इसे अपनी पहली रोटी देकर इसे प्रदर्शित करते हैं। उनकी इस भावना को सांस्कृतिक पहचान के साथ जोड़कर उनका साम्प्रदायिकरण किया जा सकता है। विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां आजादी के आन्दोलन के दौरान आर्य समाज के आन्दोलन चले जिनमें लिपि, गोरक्षा व धर्मान्तरण के नाम पर साम्प्रदायिक चेतना पनपी । 4 पिछले दिनों गोशालाओं की संख्या, गोरक्षा संगठन और इनके लिए अनुदान की राशि बढ़ी है। राष्ट्रीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष न्यायमूर्ति गुमानमल लोढ़ा ने 14 अक्तूबर 2000 के पत्र में लिखा कि 'जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड 1962 से काम कर रहा है, 1962 से 1998 तक 36 वर्षों में यह संख्या ( अनुदान पाने वाली संस्थाएं) 350 तक पहुंची व अब दो से ढाई वर्ष में चार गुनी होकर 1200 तक पहुंच गई है। 'गोरक्षा के नाम पर इंसानों की हत्या तक करने को उकसाने के लिए प्रचार सामग्री तैयार की गई है। एक खास वर्ग के प्रति नफरत फैलाने का काम किया जा रहा है। इसी पत्र में माननीय लोढ़ा जी ने लिखा कि 'एक कैसेट एक घंटे की गोधन क्रांति पर बोर्ड ने बनाई है। भारत में गोमाता पर क्या अत्याचार होते हैं, इसका दिग्दर्शन कराया गया है। हरियाणा, राजस्थान के मेव इलाकों व अन्य प्रदेश में भी गोमांस, गोहत्या के पश्चात चोरी-छुपे बेचा जाता है, हरियाणा के मेव इलाकों में यह प्रमुख कार्य है, मेरा अनुरोध है कि इन सब का लाभ लेकर, गोरक्षा आन्दोलन को सुदृढ़ बनायें ।' पत्र के इन अंशों से अनुमान लगाया जा सकता है कि राष्ट्रीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड के माध्यम से, गोरक्षा के नाम पर सरकारी धन का दुरुपयोग हो रहा है। गोरक्षा के नाम पर ये घटनाएं अचानक नहीं घटीं, बल्कि इनकी पूरी पृष्ठभूमि है। एक पूरा माहौल तैयार किया गया है, जिससे लोगों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा किया जा सके। यह गोरक्षा की मुहिम नहीं है बल्कि उसके नाम पर समाज में साम्प्रदायिक जहर घोलना है। कई गोशालाओं के मुख्य द्वार पर ऐसे होर्डिंग लगाए गए हैं जिसमें 'लुंगी पहने दाढ़ी वाला' व्यक्ति गौकशी करता दिखाया गया है। मुसलमानों की छवि 72 / साम्प्रदायिकता