पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उदार व्यक्ति के विचारों और जीवन को विकृत करके प्रस्तुत करती हैं। शिवाजी ने समर्थ रामदास स्वामी को अपना गुरु धारण किया। स्वामी रामदास ने मराठी भाषा के प्रसिद्ध कवि व सूफी शेख मोहम्मद की भूरि- भूरि प्रशंसा करते हुए लिखा कि 'शेख मोहम्मद तुम महान हो। तुमने संसार के रहस्य को ऐसे ढंग से और ऐसी भाषा में उद्घाटित किया है जो कि सामान्य व्यक्ति की समझ परे है। तुमने समस्त संसार की मूलभूत एकता और पहचान को सच्चे अर्थों में ग्रहण किया है। तुमने हमारे ऊपर अहसान किया है, हम तुम्हारे ऋणी हैं और इस ऋण को अपने शरीर और आत्मा को तुम्हारे चरणों में अर्पित करके भी नहीं चुका सकते। मैं तुम्हारे पैरों की पवित्र धूल अपने सिर पर रखता हूं।' शिवाजी के विचारों और जीवन पर ऐसे महान संत का प्रभाव था, जिनके मन पर जरा भी धार्मिक कट्टरता नहीं थी । शिवाजी को हिन्दुओं का नेता कहना या उन्हें हिन्दू धर्म का रक्षक मानना उनके व्यक्तित्व को सीमित करके देखना है; उनके उदार हृदय, एवं उनके मानवीय मूल्यों का अपमान करना है। शिवाजी के पूर्वजों में साम्प्रदायिक विद्वेष नहीं था । वे सभी धर्मों के महान संतों का सम्मान करते थे। इसका असर भी उनके जीवन पर था । प्रसिद्ध है कि शिवाजी के दादा की पत्नी मौलीजी ने महाराष्ट्र के खुलदाबाद के सूफी संत शाह शरीफजी से आशीर्वाद लिया और उनके आश्रम में रहीं। यह भी प्रसिद्ध है कि शिवाजी के दादा के कोई संतान नही थी, और शाह शरीफ जी के आशीर्वाद से उनको दो पुत्र हुए। कहा जाता है कि शाह शरीफ जी को सम्मान देने के लिए ही शिवाजी के पिता का नाम शाहजी रखा गया था। ऐसे पालन पोषण में बढ़े तथा दूसरे धर्मों का आदर करने वाले महान पुरुष को साम्प्रदायिक कहना उसके उदार विचारों का अनादर करना है। अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए तथा वर्तमान में अपनी साम्प्रदायिक राजनीति का औचित्य ठहराने के लिए साम्प्रदायिक लोग शिवाजी को हिन्दू धर्म के रक्षक के रूप में पेश करते हैं। शिवाजी किसी खास धर्म के खिलाफ या पक्ष में नहीं थे, वे सभी धर्मों का आदर करते थे । गुरु गोविन्द सिंह गुरु गोविन्द सिंह सिक्खों के दसवें गुरु थे। गुरु गोविन्द सिंह ने ही खालसा पंथ की नींव रखी । वे बहुत बड़े योद्धा थे, उनकी लड़ाई हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी हिन्दू राजाओं के साथ-साथ मुगल शासक औरंगजेब के साथ भी रही। पर साम्प्रदायिक इतिहासकार गुरु गोविन्द सिंह की औरंगजेब से लड़ाई को हिन्दूधर्म और इस्लाम की लड़ाई के रूप में प्रस्तुत करते हैं। साम्प्रदायिकता और इतिहास / 87