पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/८७

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वास्तव में ऐसा नहीं है । यह ठीक है कि इन दोनों का धर्म अलग अलग था, लेकिन उनके बीच यह धार्मिक लड़ाई नहीं थी । गुरु गोविन्द सिंह सभी धर्मों का आदर करते थे। उनकी लड़ाई राजनीतिक थी न कि धार्मिक । वे धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध थे, अंधविश्वासों के विरुद्ध थे। उनके जीवन की घटनाओं से इसका अनुमान लगाया जा सकता है। गुरु गोविन्द सिंह के जीवनी लेखक गोपाल सिंह ने लिखा है- 'बहुत से सिक्ख गुरु के उपदेशों को मानते थे । गुरु गोविन्द सिंह उनकी आध्यात्मिक शक्ति को और धार्मिक शक्ति को तो खूब पहचानते थे, लेकिन वे राजनीतिक दृष्टि से इतने प्रभावशाली नहीं थे। गुरु उन्हें एक ऐसी शक्ति में बदलना चाहते थे, इसमें वे तभी सफल हो सकते थे जबकि हर एक व्यक्ति आजाद हो । हर एक व्यक्ति समान हो । जात-पात का भेदभाव न हो। जात-पात के भेदभाव के उनको कडुवे अनुभव थे। एक बार गुरु ने दो शिष्यों को संस्कृत पढ़ने के लिए बनारस भेजा तो पंडितों ने उनको पढ़ाने से इन्कार कर दिया, क्योंकि वे नीच जाति के थे । हिन्दुओं में कन्याओं के जन्म लेते ही मार दिया जाता था। गुरु गोविन्द सिंह ने इन बुराइयों को दूर करने के लिए कहा कि वे किसी प्रकार के अंधविश्वास को न मानें । जब उन्होंने पंच प्यारों को दीक्षित किया तो उस समय की घटना और उनका भाषण देखने योग्य है । 'सढौरा के सैयद बुधूशाह, जो अपने संत स्वभाव के कारण प्रसिद्ध थे, गुरु गोविन्द सिंह से मिलने आए। उन्होंने गुरु की सेवा के लिए पांच सौ पठानों को भी भेजा था, लेकिन वे धान के लालच में गुरु का साथ छोड़ गए । जब बुधूशाह को इस बात का पता चला तो उनको बहुत दुख हुआ और अपने चार बेटों, एक भाई और सात सौ सिपाहियों के साथ गुरु की सेवा में हाजिर हो गए। मंगानी नामक स्थान पर पहाड़ी राजाओं और गुरु गोविन्द सिंह के बीच घमासान युद्ध हुआ, कृपाल सिंह को छोड़कर उनके बाकी सब सरदार जान बचाकर भाग निकले। इस लड़ाई में बुधूशाह के रिश्तेदारों ने और सैनिकों ने बड़ी वीरता का प्रदर्शन किया । गुरु के रिश्ते का भाई संगाशाह और पीर बुधूशाह के दो पुत्र मारे गए । गुरु ने अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए पीर बुधूशाह को कृपाण, कंघा, अपने कुछ टूटे हुए केश और पगड़ी भेंट की। नाभा में ये वस्तुएं आज भी पवित्र स्मृति चिन्हों के रूप में संजो कर रखी हुई हैं। ' गुरु गोविन्द सिंह के जीवन से जुड़ी हुई तमाम ऐसी घटनाएं हैं जो साझा संस्कृति की अद्भुत मिसाल हैं। चमकौर की घमासान लड़ाई के बाद गुरु की जान बचाने के लिए उनके शेष बचे हुए पांच शिष्यों ने सुझाया कि 88 / साम्प्रदायिकता