पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/८८

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वे वहां से चल जाएं । भारी मन इस बात को स्वीकार किया और माछीवाड़ा के जंगल में पहुंचे, जो रोपड़ और लुधियाना के बीच है। पैदल चलने के कारण गुरु के पैरों में छाले पड़ गए थे, और उनसे चला नहीं जा रहा था। यहां पहले से निर्धारित योजना के तहत उन्हें तीन सिक्ख मिले। जहां वे ठहरे थे वहां उनकी मुलाकात दो पठानों से हुई, उनमें से एक के घर वे रूके। मुगल सेना गुरु की तलाश में वहां पहुंची, सेना ने पूरे घर की तलाशी ली, मगर गुरु को नहीं पा सकी। इन्होंनें गुरु गोविन्द सिंह को छुपा लिया था। वहां से सुरक्षित निकालने के लिए दो पठानों और तीन सिक्खों ने गुरु को चारपाई पर लिटाया और यह कहकर मुगल सेनाओं के बीच से निकाला कि यह हमारा पीर है, यह हाल ही में हज करके लौटे हैं और आज कल इनका व्रत चल रहा है। इस घटना से अनुमान लगाया जा सकता है कि धर्म के आधार पर लोगों में किसी तरह का भेदभाव नहीं था । इतिहास में दो अलग अलग धर्मो से संबंधित शासकों के बीच की लड़ाई का कारण धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक था। दोनों धर्मों के लोग एक दूसरे के दुख तकलीफों में शामिल होते थे। इस तरह कहा जा सकता कि गुरु गोविन्द सिंह ने सभी धर्मो को समान समझा। वे धार्मिक आधार पर भेदभाव को अनुचित समझते थे, उनके यहां हिन्दू व मुसलमान दोनों के लिए दरवाजे खुले थे । उनको किसी एक धर्म का रक्षक कहना या किसी विशेष सम्प्रदाय तक सीमित करना उनके उदार व्यक्तित्व के अनुकूल नहीं है और उन्होंनें किसी धर्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी यह मानना तो उनका एवं उनके विचारों का अनादर करना है। उनकी लडाई एक राजा से थी, न कि किसी धर्म के नेता से। उनका राजाओं से मतभेद धार्मिक आधार पर नहीं था, बल्कि यह लड़ाई पूरी तरह से राजनीतिक थी । यह लड़ाई राजनीतिक थी, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके खिलाफ लड़ने वालों में हिन्दू राजा बहुत थे। उनके अधिकतर लड़ाई या तो इनसे सीधी-सीधी थी या फि र वे मुगल शासकों के सहायक थे । युद्ध के दौरान मुग़ल सेनापति सैयद खां गुरु गोविन्द सिंह से इतना प्रभावित हुआ कि उसने युद्ध करना ही छोड़ दिया। औरगंजेब के बाद बहादुरशाह गद्दी पर बैठा। उसने गुरु गोविन्द सिंह को मिलने का निमंत्रण दिया। गुरु गोविन्द सिंह ने निमंत्रण स्वीकार किया। बहादुर शाह ने आगरा में गुरु गोविन्द सिंह का भव्य स्वागत किया, बहुमूल्य उपहार दिए। वहां ठहरने का अनुरोध किया | गुरु गोविन्द सिंह ने इसे सरहिंद के नवाब के प्रजा पर अत्याचारों के बारे में बादशाह को साम्प्रदायिकता और इतिहास / 89