पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/८९

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अवगत कराने का अच्छा अवसर समझकर स्वीकार कर लिया । । इससे लगता है कि गुरु के मन में मुसलमानों के प्रति कोई शंका नहीं थी। उनकी लड़ाई तो शासक औरगंजेब से थी। यहां एक दिन बादशाह ने गुरु से कहा, 'हमारे धर्म से अच्छा और कोई धर्म नहीं है । फिर नर्क से छुटकारा चाहने वाले सब लोग इस धर्म को क्यों नहीं स्वीकार कर लेते?' उतर में गुरु ने कहा, 'बादशाह सलामत, मोहर का मूल्य ऊपर छपी हुई तस्वीर के कारण नहीं बल्कि जो उसके अंदर है, उसके कारण है। नकली सिक्के पर भी तो शाही मोहर छपी होती है, लेकिन यह बाजार में नहीं चलता। उसे कोई नहीं लेना चाहता। ठीक यही बात धर्म पर लागू होती है। ईश्वर यह नहीं देखता कि हृदय के ऊपर किसकी छाप लगी है वह तो हृदय के अंदर देखता है, उसी के अनुसार फैसला करता है कि कौन स्वर्ग जायेगा और कौन नर्क । मैं एक ही ईश्वर को मानता हूं, दो या तीन को नहीं, और काफिर उसको मानता हूं, जो ईश्वर के अस्तित्व में ही विश्वास नहीं करता ।' गुरु गोविन्द सिहं की सारी जिन्दगी मुगल शासकों के खिलाफ लड़ाई में बीती, उनसे निरंतर संघर्ष करना पड़ा, लेकिन उनके प्रति धार्मिक नफरत जरा भी नहीं थी। उन्होंनें अपने अनुयायियों से कहा कि दूसरे धर्मों का आदर करो । सभी मनुष्यों को एक समान मानने के लिए कहा। मानस की जाति सबै एक पहचानबो

हुरा मसीत सोई पूजा और निमाज ओइ ।

करता करीम सोई राजक रहीम ओई दूसरो न भेद कोइ ।

पुरान और कुरान ओई।

केते गंगबासी केते मदीना मका निवासी ।

बेद पुरान कतेब कुरान अभेद । 90 / साम्प्रदायिकता