पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/९०

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गुरु गोविन्द सिंह ने कहा कि ईश्वर और अल्लाह में कोई अन्तर नहीं है। उनका मानना है कि सभी धार्मिक ग्रन्थों में एक जैसी शिक्षाएं हैं चाहे वह कुरान हो जिसे मुसलमान पवित्र मानते हैं चाहे वह वेद या पुराण हों जिसे हिन्दू पूज्य मानते हैं। इनमें मूलभूत एकता है इनमें किसी प्रकार का भेद नहीं है। गुरु गोविन्द सिंह ने धर्मों के बीच व्याप्त एकता के सूत्रों को ढूंढा। उनका मानना था कि गंगा को पूज्य मानने वाले लोगों और मक्का को पवित्र मानने वाले लोगों में कोई अन्तर नहीं है । इस तरह कहा जा सकता है कि मध्यकाल में धर्म के आधार पर झगड़ा नहीं था, दो धर्मों को मानने वाले शासकों की लड़ाई के कारण राजनीतिक होते थे। टीपू सुल्तान टीपू सुल्तान मैसूर का राजा था, जो हैदरअली के बाद राजगद्दी पर बैठा। टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों से कड़ा संघर्ष किया। वह आखिरी दम तक अंग्रेजों से लड़ा। भारत के इतिहास में टीपू सुल्तान एक ऐसा राजा है जो कि अंग्रेजों से लड़ता हुआ मारा गया । अंग्रेजों के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए भी उसने कोशिश की, पर उसे कोई विशेष कामयाबी हासिल नहीं हो सकी। इसके लिए उसने अपने आस-पास के राजाओं से संपर्क साधना चाहा था। टीपू सुल्तान का जीवन धार्मिक दृष्टि से बहुत उदार रहा, वह किसी से धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता था । वह सभी धर्म के अनुयायियों का आदर करता था। उसके शासन काल में सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार थे । टीपू सुल्तान ने दक्षिण भारत के बहुत से मंदिरों को जागीरें दान दे रखी थीं, ताकि उनका रख-रखाव और देखभाल एवं पूजा आदि ठीक ढंग से हो सके। एक बार मराठा सेना ने टीपू सुल्तान की राजधानी श्रीरंगपट्टनम को घेर लिया, परन्तु उनको हार का मुंह देखना पड़ा तो उन्होंने वापस हटते हुए बस्तियों को तहस-नहस किया और शहर के पास कावेरी नदी पर स्थित श्रीरंगपट्टनम के मंदिर को भी लूटा और उसको क्षति पहुंचाई। टीपू सुल्तान ने बिना किसी भेदभाव के उसकी मुरम्मत करवाई और उसका पुनर्निर्माण करवाया । टीपू सुल्तान जब भी किसी अभियान पर निकलता था तो वह शृंगेरी में स्थित हिन्दुओं के मठ के शंकराचार्य से आशीर्वाद लेकर निकलता था। इसमें उसकी कितनी आस्था थी इसका अनुमान सहज ही इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने इस मठ में शारदा की मूर्ति के निर्माण के लिए धन दिया। भारत के प्रसिद्ध दार्शनिक सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 'धर्मों की आधारभूत साम्प्रदायिकता और इतिहास / 91