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राजतंत्रवादी जर्मनी द्वारा लादी गयी ब्रेस्त-लितोव्स्क की शांति-संधि ने, और बाद में अमरीका तथा फ्रांस के “जनवादी" गणतंत्रों और "स्वाधीन" इंगलैंड द्वारा लादी गयी और भी ज्यादा पाशविक और घृणित वार्साइ की संधि ने मानव-जाति का बहुत भारी उपकार किया है। इन संधियों ने साम्राज्यवाद के भाड़े के क़लम के कुलियों और प्रतिक्रियावादी कूपमंडूकों दोनों का पर्दाफ़ाश कर दिया है जो अपने-आपको कहते तो शान्तिवादी और समाजवादी थे पर जो “विलसनवाद" की प्रशंसा के गीत गाते थे और ज़ोर देकर कहते थे कि शान्ति और सुधार साम्राज्यवाद के अंतर्गत संभव है।
इस युद्ध में, जो सिर्फ यह तय करने के लिए लड़ा गया था कि लूट के माल का बड़ा हिस्सा अंग्रेज़ वित्तीय लुटेरों के गिरोह को मिले या जर्मन वित्तीय लुटेरों के गिरोह को, दसियों लाख लोग मारे गये और अपंग हुए और फिर इन दोनों “शान्ति-संधियों" से उन लाखों और करोड़ों लोगों की आंखें बहुत तेजी से खुल गयी हैं जो पददलित और पीड़ित हैं, जिन्हें पूंजीपति धोखा देते रहते हैं और ठगते रहते हैं। इस तरह युद्ध के परिणामस्वरूप सब तरफ़ फैली बर्बादी के बीच एक विश्वव्यापी क्रांतिकारी संकट उत्पन्न हो रहा है। इस संकट को चाहे जितनी लम्बी और कठिन मंजिलों में से गुजरना पड़े, उसका अंत सर्वहारा क्रांति की सफलता और विजय के अलावा और कुछ नहीं हो सकता।
दूसरी इंटरनेशनल का बैसेल वाला घोषणापत्र जिसने १९१२ में आम तौर पर युद्ध के सम्बन्ध में नहीं (युद्ध तरह-तरह के होते हैं, क्रांतिकारी युद्ध भी होते हैं), बल्कि उसी युद्ध के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट किये थे जो १९१४ में छेड़ा गया था, दूसरी इंटरनेशनल के सूरमाओं के शर्मनाक दिवालियेपन और गद्दारी का एक स्मारक बन गया है ।
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