पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/११

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इसलिए इस घोषणापत्र को मैं इस संस्करण³ में परिशिष्ट के रूप में दे रहा हूं और पाठकों से मैं फिर कहता हूं कि वे नोट करें कि दूसरी इंटरनेशनल के सूरमा इस घोषणापत्र के कुछ खास अंशों से किस भांति ठीक उसी तरह कतराने की कोशिश कर रहे हैं जिस तरह एक चोर उस जगह से कतराता है जहां पर उसने चोरी की हो! घोषणापत्र के ये अंश वही हैं जिनमें आनेवाले युद्ध और सर्वहारा क्रान्ति के सम्बंध को स्पष्ट , साफ़ और निश्चित बताया गया था।


इस पुस्तक में “कौत्स्कीवाद" की आलोचना की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय विचारधारा है जिसका प्रतिनिधित्व करनेवाले दूसरी इंटरनेशनल के " प्रमुखतम सिद्धान्तकार" और नेता (आस्ट्रिया में प्रोटो बावेर और उनकी मंडली , इंगलैंड में रैमजे मैकडानल्ड इत्यादि, फ्रांस में अलबर्ट टामस, इत्यादि-इत्यादि), अनेकों समाजवादी, सुधारवादी, शांतिवादी, पूंजीवादी-जनवादी और पादरी दुनिया के तमाम देशों में मौजूद हैं।

विचारधारा की यह प्रवृत्ति एक ओर तो दूसरी इंटरनेशनल के टूटने- फूटने और पतन का परिणाम है, और दूसरी ओर यह उस निम्न-पूंजीपति वर्ग की विचारधारा का अनिवार्य परिणाम है, जो अपने जीवन की तमाम परिस्थितियों के कारण पूंजीवादी और जनवादी पूर्वाग्रहों के शिकार बने रहते हैं।

कौत्स्की और उनके जैसे लोगों के विचार मार्क्सवाद के उन तमाम क्रांतिकारी सिद्धांतों से मुकर जाना है, जिनका कौत्स्की खुद दसियों वर्ष से समर्थन करते आये हैं, खास तौर से समाजवादी अवसरवाद (बर्न्सटीन , मिलेरां, हिन्दमैन, गोम्पर्स, आदि) के खिलाफ़ अपने संघर्ष में। इसलिए

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