पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१००

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लेखक ने यह भी लिखा , “परन्तु बिजली की इजारेदारी उसी समय स्थापित होगी जब उत्पादकों को उसकी आवश्यकता होगी, अर्थात् उस समय जब कारोबार के ढह जाने का महान् संकट बिजली-उद्योग के दरवाजे पर खड़ा होगा और जब वे विशालकाय महंगे बिजलीघर, जो इस समय बिजली की प्राइवेट 'कम्पनियों' द्वारा हर जगह बहुत पैसा लगाकर खड़े किये जा रहे हैं और जो शहरों, राज्यों आदि से आंशिक इजारेदारी भी प्राप्त करने लगे हैं, मुनाफ़े पर नहीं चलाये जा सकेंगे। उस समय जल-शक्ति का उपयोग करना पड़ेगा। पर उससे राज्य के खर्च पर सस्ती बिजली पैदा करना असंभव होगा ; इसे भी 'राज्य' द्वारा नियंत्रित प्राइवेट इजारेदारी के हाथों में सौंप देना पड़ेगा क्योंकि प्राइवेट उद्योगों ने बहुत से समझौते कर रखे हैं और भारी मुआवजे की शर्त लगा रखी है ... नाइट्रेट की इजारेदारी के मामले में यही हुआ था, तेल की इजारेदारी के मामले में भी यही बात है, बिजली की इजारेदारी के मामले में भी यही होगा। समय आ गया है कि एक सुंदर सिद्धांत की चकाचौंध से अंधे हो जानेवाले हमारे राज्यीय समाजवाद के समर्थक आखिरकार इस बात को समझ लें कि जर्मनी में इजारेदारियों ने कभी भी उपभोक्ताओं को फायदा पहुंचाने का, या इजारेदारी चलानेवाले के मुनाफ़े का एक भाग भी राज्य को देने का उद्देश्य अपने सामने नहीं रखा है और न ही कभी परिणामस्वरूप इन दोनों में से कोई बात हुई है ; उन्होंने हमेशा राज्य के हितों की बलि देकर उन निजी उद्योगों को, जिनका दिवाला निकलनेवाला था, दुबारा अपने पैरों पर खड़ा कर देने में सुविधा पहुंचाने का काम किया है।"*[१]

जर्मन पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों को ऐसी महत्वपूर्ण स्वीकारोक्तियों पर मजबूर होना पड़ता है। यहां पर हम स्पष्ट रूप से देखते हैं कि वित्तीय


  1. *«Die Bank» १९१२, १, पृष्ठ १०३६ ; १९१२, २, पृष्ठ ६२९; १९१३, १, पृष्ठ ३८८।

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