स्थापना १९०९ में हुई थी और जिसने उत्पादन को बहुत सही-सही हिसाब लगाकर कारखानों के पांच समूहों में बांट दिया था : जर्मन , बेलजियम , फ्रांसीसी , स्पेनी तथा ब्रिटिश ; और इंटरनेशनल डायनामाइट ट्रस्ट का भी जिसके बारे में लिएफ़मैन ने कहा है कि यह “जर्मनी के समस्त बारूद बनानेवाले कारखानों का बिल्कुल आधुनिक घनिष्ठ गठजोड़ है, जिन्होंने इसी आधार पर संगठित फ्रांस तथा अमरीका के बारूद वनानेवाले कारखानों के साथ मिलकर एक तरह से दुनिया को आपस में बांट लिया है।"*[१]
लिएफ़मैन ने हिसाब लगाया है कि १८९७ में कुल मिलाकर लगभग चालीस ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय ट्रस्ट थे जिनमें जर्मनी का हिस्सा था , और १९१० में उनकी संख्या सौ के लगभग थी।
कुछ पूंजीवादी लेखकों ने (जिनमें का० कौत्स्की भी शामिल हो गये हैं ; उन्होंने अपने उन मार्क्सवादी विचारों को बिल्कुल त्याग दिया है जो, उदाहरण के लिए, १९०९ में उनके थे) यह मत प्रकट किया है कि चूंकि अन्तर्राष्ट्रीय काटल पूंजी के अन्तर्राष्ट्रीयकरण की सबसे ज्वलंत अभिव्यक्ति हैं, इसलिए उनसे पूंजीवाद के अंतर्गत राष्ट्रों के बीच शांति की आशा उत्पन्न होती है। सिद्धांत की दृष्टि से यह मत बिल्कुल बेतुका है , और व्यवहार में यह मत एक कुतर्क और बदतरीन किस्म के अवसरवाद का बेईमानी से भरा हुआ समर्थन है । अन्तर्राष्ट्रीय कार्टेलों से पता चलता है कि पूंजीवादी इजारेदारियां किस हद तक विकसित हो चुकी हैं , और विभिन्न पूंजीवादी संघों के बीच संघर्ष का उद्देश्य क्या है। यह आखिरवाली बात बहुत महत्वपूर्ण है ; जो कुछ हो रहा है, उसके ऐतिहासिक-आर्थिक तात्पर्य का पता हमें केवल इसी से चलता है ; क्योंकि बदलते हुए अपेक्षतः विशिष्ट तथा अस्थायी कारणों के साथ-साथ संघर्ष के रूपों में तो निरंतर परिवर्तन होते रह सकते हैं और होते भी हैं, परन्तु
- ↑ * Liefmann, «Kartelle und Trusts», दूसरा संस्करण, पृष्ठ १६१ ।
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