अंतिम रूप से पूरे भूमंडल का बंटवारा है - अंतिम रूप से इस माने में , नहीं कि अब उसका पुनर्विभाजन असंभव है, इसके विपरीत पुनर्विभाजन संभव तथा अनिवार्य हैं - बल्कि इस माने में कि पूंजीवादी देशों की औपनिवेशिक नीति ने हमारे इस ग्रह पर खाली इलाक़ों पर आधिपत्य जमाने का काम पूरा कर लिया है। पहली बार दुनिया पूरी तरह बंट गयी है और इसलिए अब भविष्य में उसके पुनर्विभाजन ही संभव हैं, अर्थात् अब यह नहीं हो सकता कि कोई ऐसा इलाक़ा जिसका कोई मालिक न हो किसी "मालिक" क़ब्जे में आ जाये, बल्कि अब तो केवल यह हो सकता है कि इलाके एक “मालिक" के हाथ से दूसरे के हाथ में चले जायें।
इसलिए हम विश्व औपनिवेशिक युग के एक खास युग से होकर गुज़र रहे हैं, जिसका घनिष्ठतम संबंध “पूंजीवाद के विकास की नवीनतम अवस्था" के साथ , वित्तीय पूंजी के साथ है। इस कारण , सबसे पहले यह आवश्यक है कि तथ्यों पर अधिक विस्तारपूर्वक विचार किया जाये, ताकि इस बात का पता यथासंभव सही-सही लगाया जा सके कि यह युग किस बात में इससे पहले के युगों से भिन्न है, और वर्तमान स्थिति क्या है। सबसे पहले तो इस प्रसंग में तथ्यों से संबंधित दो प्रश्न उठते हैं : क्या औपनिवेशिक नीति का उग्र रूप धारण करना , उपनिवेशों के लिए संघर्ष का तेज़ होना , वित्तीय पूंजी के इस युग में ही देखने में आता है ? और इस एतबार से इस समय दुनिया किस ढंग से बंटी हुई है ?
उपनिवेशीकरण के इतिहास के बारे में अपनी पुस्तक में अमरीकी लेखक मारिस *[१] ने उन्नीसवीं शताब्दी के विभिन्न कालों में ग्रेट ब्रिटेन , फ्रांस तथा जर्मनी के उपनिवेशों से संबंधित तथ्य-सामग्री को सार-रूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने जो नतीजे निकाले हैं उनका संक्षिप्त सार इस प्रकार है:
- ↑ * Henry C. Morris, «The History of Colonization», New York 1900, Vol. II, p. 88, Vol I, p. 419, Vol. II, p 304.
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