पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१२

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यह कोई आकस्मिक घटना नहीं है कि अब दुनिया भर के “कौत्स्कीवादी" व्यावहारिक राजनीति में कट्टर अवसरवादियों के साथ (दूसरी, या पीली इंटरनेशनल के द्वारा) और पूंजीवादी सरकारों के साथ (उन मिली-जुली पूंजीवादी सरकारों के द्वारा जिनमें समाजवादी शामिल होते हैं) मिल गये हैं।

दुनिया के बढ़ते हुए सर्वहारा क्रान्तिकारी आन्दोलन का आम तौर से, और कम्युनिस्ट आन्दोलन का खास तौर से, यह तक़ाज़ा है कि 'कौत्स्कीवाद" की सैद्धांतिक गल्तियों का विश्लेषण किया जाये और उनका पर्दाफ़ाश किया जाये। इस चीज़ की इसलिए और भी ज़रूरत है कि सामान्यतया शांतिवाद और "जनवाद", जो मार्क्सवाद से ज़रा भी सम्बन्ध रखने का दावा नहीं करते लेकिन जो कौत्स्की और उनकी मंडली की तरह साम्राज्यवाद के अंतर्विरोधों की गहराई और उनसे अनिवार्य रूप से उत्पन्न होनेवाले क्रांतिकारी संकट पर परदा डालते हैं, आज भी सारी दुनिया में व्यापक रूप से प्रचलित हैं। सर्वहारा वर्ग की पार्टी का परम कर्त्तव्य है कि वह इन प्रवृत्तियों के विरुद्ध संघर्ष करे और छोटे-छोटे मालिकों को उन्हें ठगने वाले पूंजीपति वर्ग के फंदे से निकालकर अपनी ओर ले आये, उन लाखों मेहनतकशों को अपनी ओर ले आये जो कमोबेश निम्न-पूंजीवादी अवस्था में रहते हैं।

"पूंजीवाद का परजीवी स्वभाव तथा उसका ह्रास" शीर्षक आठवें अध्याय के बारे में भी थोड़े से शब्द कहना ज़रूरी है। जैसा कि पुस्तक में बताया गया है, भूतपूर्व “मार्क्सवादी" और अब कौत्स्की के साथी हिल्फ़र्डिंग, जो कि "जर्मनी की स्वतंत्र सामाजिक-जनवादी पार्टी "⁴ के अन्दर पूंजीवादी, सुधारवादी नीति के एक मुख्य प्रतिपादक हैं, इस प्रश्न पर खुल्लमखुल्ला शांतिवादी और सुधारवादी अंग्रेज़, हाबसन से भी एक क़दम

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