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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१२६

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के युग के - मुख्य मार्क्सवादी सिद्धांतवेत्ता हैं। साम्राज्यवाद की हमारी परिभाषा में जो मुख्य विचार प्रकट किये गये थे उन पर कौत्स्की ने १९१५ में, बल्कि नवम्बर १९१४ में ही, जबर्दस्त हमला किया। इस सिलसिले में उन्होंने कहा कि साम्राज्यवाद को अर्थतंत्र की कोई "मंज़िल" या अवस्था नहीं बल्कि एक नीति समझा जाना चाहिए, एक ऐसी निश्चित नीति जिसे वित्तीय पूंजी "पसंद करती है"। उन्होंने कहा कि “वर्तमान पूंजीवाद" को और साम्राज्यवाद को "एक ही चीज़" न समझनी चाहिए, कि यदि साम्राज्यवाद का अर्थ यह लगाया गया कि "वर्तमान पूंजीवाद की सभी घटनाओं" को- कार्टेल , संरक्षण, महाजनों का प्रभुत्व तथा औपनिवेशिक नीति - साम्राज्यवाद माना जाये तो यह प्रश्न कि साम्राज्यवाद पूंजीवाद के लिए आवश्यक है या नहीं "सरासर एक ही बात को शब्दों के हेर-फेर के साथ बार बार दोहराना होगा," क्योंकि उस दशा में तो "साम्राज्यवाद स्वाभाविक रूप से पूंजीवाद की एक बुनियादी आवश्यकता है", आदि, आदि। कौत्स्की के विचारों को प्रस्तुत करने का सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि साम्राज्यवाद की उनकी परिभाषा को उद्धृत कर दिया जाये जो कि उन विचारों के सार-तत्व के सर्वथा प्रतिकूल है जिन्हें हमने प्रतिपादित किया है (क्योंकि जर्मन मार्क्सवादियों के पक्ष की ओर से, जो पिछले कई वर्षों से इसी प्रकार के विचारों का समर्थन करते आये हैं, उठायी जानेवाली आपत्तियों के बारे में कौत्स्की बहुत समय से यह जानते हैं कि वे मार्क्सवाद की एक निश्चित धारा की ओर से उठायी जानेवाली आपत्तियां हैं)।

कौत्स्की की परिभाषा इस प्रकार है:

"साम्राज्यवाद अति विकसित औद्योगिक पूंजीवाद की उपज है। वह हर प्रौद्योगिक पूंजीवादी राष्ट्र की इस चेष्टा में निहित है कि वह, इस बात की ओर कोई ध्यान दिये बिना कि उन प्रदेशों में कौन-सी

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