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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१२९

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वाणिज्यिक लाभ की एक जैसी लालसा द्वारा प्रेरित है; दूसरे, इस दृष्टि से कि वित्तीय अर्थात् पूंजी लगाने के हितों ने वाणिज्यिक हितों की तुलना में प्रधानता प्राप्त कर ली है।"*[]

हम देखते हैं कि कौत्स्की ने आम तौर पर सभी अंग्रेज़ों का जो हवाला दिया है वह बिल्कुल ग़लत है (अगर उनका अभिप्राय घटिया अंग्रेज़ साम्राज्यवादियों या साम्राज्यवाद के खुले समर्थकों से था तो बात दूसरी है)। हम देखते हैं कि कौत्स्की दावा तो यह करते हैं कि वह पहले की ही तरह मार्क्सवाद के समर्थक हैं, पर वास्तव में वह सामाजिक- उदारवादी हाबसन से भी एक क़दम पीछे हट गये हैं, जिसने आधुनिक साम्राज्यवाद की दो "इतिहास की दृष्टि से ठोस" ( कौत्स्की की परिभाषा ऐतिहासिक सत्य का उपहास है! ) विशेषताओं पर ज्यादा सही ढंग से विचार किया है : (१) अनेक साम्राज्यवादों के बीच प्रतियोगिता, और (२) व्यापारी की तुलना में महाजन की प्रधानता। यदि मुख्यतः सवाल औद्योगिक देशों द्वारा कृषिप्रधान देशों पर आधिपत्य करने का होता, तो व्यापारी की भूमिका सबसे प्रमुख हो जाती है।

कौत्स्की की परिभाषा केवल ग़लत और अमार्क्सवादी ही नहीं है। वह ऐसी पूरी विचार-पद्धति के आधार का काम करती है जो आद्योपांत मार्क्सवादी सिद्धांत तथा मार्क्सवादी व्यवहार से संबंध-विच्छेद की द्योतक है। इसका उल्लेख हम आगे चलकर करेंगे। कौत्स्की ने शब्दों के बारे में जो यह बहस छेड़ी है कि पूंजीवाद की नवीनतम अवस्था को साम्राज्यवाद कहा जाना चाहिए या "वित्तीय पूंजी वाली अवस्था", वह बिल्कुल फ़ालतू बहस है। जो जी में आये कह लीजिये , उससे कोई अंतर नहीं पड़ता। असल बात यह है कि कौत्स्की साम्राज्यवाद की राजनीति को उसकी अर्थ-


  1. * Hobson, »Imperialism», लंदन, १६०२, पृष्ठ ३२४ ।

9-1838

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