व्यवस्था से अलग कर लेते हैं, वह नये इलाक़ों पर आधिपत्य को एक ऐसी नीति बताते हैं जिसे वित्तीय पूंजी "पसंद करती है", और उसके मुक़ाबले पर एक दूसरी पूंजीवादी नीति लाकर खड़ी कर देते हैं जिसके बारे में उनका कहना यह है कि वह वित्तीय पूंजी के इसी आधार पर संभव हो सकती है। तो इससे निष्कर्ष यह निकलता है कि अर्थ-व्ववस्था के क्षेत्र में इजारेदारियां राजनीति के क्षेत्र में गैर-इजारेदारी, अहिंसात्मक तथा गैर- आधिपत्यकारी तरीकों के साथ मेल खा सकती हैं। तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि दुनिया का क्षेत्रीय विभाजन, जो वित्तीय पूंजी के युग में ही पूरा किया गया था, और जो सबसे बड़े पूंजीवादी राज्यों के बीच प्रतिद्वंद्विता के वर्तमान विशिष्ट रूपों का आधार है, गैर-साम्राज्यवादी नीति के साथ मेल खा सकता है। इसका परिणाम यह है कि पूंजीवाद की नवीनतम अवस्था के गूढ़तम अंतर्विरोधों की गहराई की कलई खोलने के बजाय उन्हें अनदेखा कर दिया जाये तथा उनकी तीव्रता को कम कर दिया जाये, इसका परिणाम है मार्क्सवाद के बजाय पूंजीवादी सुधारवाद।
कौत्स्की साम्राज्यवाद तथा दूसरों के इलाके पर आधिपत्य जमाने की नीति के जर्मन समर्थक कूनोव के साथ बहस में उलझ जाते हैं, जो बहुत ही भोंडे ढंग से तथा बेहयाई के साथ यह दलील देते हैं कि वर्तमान पूंजीवाद ही साम्राज्यवाद है; पूंजीवाद का विकास अनिवार्य तथा प्रगतिशील है; इसलिए साम्राज्यवाद प्रगतिशील है; इसलिए हमें उसके आगे नाक रगड़ना चाहिए और उसका गुणगान करना चाहिए! यह कुछ-कुछ वैसा ही चित्र है जैसा कि १८९४-९५ में नारोदनिकों ने रूसी मार्क्सवादियों का खींचा था। उन्होंने दलील दी: यदि मार्क्सवादियों का यह विश्वास है कि पूंजीवाद रूस में अनिवार्य है, कि वह प्रगतिशील है तो उन्हें एक शराबखाना खोल लेना चाहिए और पूंजीवाद के विचार लोगों के दिमाग़ में बिठाना शुरू कर देना चाहिए। कूनोव को कौत्स्की का उत्तर इस
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