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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१३१

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प्रकार है: साम्राज्यवाद आजकल का पूंजीवाद नहीं है; वह आजकल के पूंजीवाद की नीति का केवल एक रूप है। हम इस नीति के खिलाफ़, साम्राज्यवाद, आधिपत्यों आदि के खिलाफ़ लड़ सकते हैं और हमें लड़ना चाहिए।

यह उत्तर देखने में बिल्कुल उचित प्रतीत होता है परंतु यह साम्राज्यवाद के साथ मेल कर लेने की ज्यादा गूढ़ तथा ज्यादा छुपी हुई (और इसलिए ज्यादा खतरनाक) पैरवी है, क्योंकि ट्रस्टों तथा बैंकों की नीति के खिलाफ़ ऐसी "लड़ाई" जिससे ट्रस्टों तथा बैंकों की अर्थपद्धति के आधार पर कोई प्रभाव न पड़ता हो, पूंजीवादी सुधारवाद तथा शांतिवाद के अलावा, सदिच्छाओं की उदारतापूर्ण तथा निष्कपट अभिव्यक्ति के अलावा और कुछ नहीं है। मौजूदा विरोधों की गहराई का पता लगाने के बजाय उनसे कतराना, उनमें से सबसे महत्वपूर्ण विरोधों को भूल जाना- यह है कौत्स्की का सिद्धांत, जिसमें और मार्क्सवाद में कोई समानता नहीं है। स्वाभाविक रूप से, इस प्रकार का "सिद्धांत" केवल कूनोव जैसे लोगों के साथ एकता की पैरवी करने का काम दे सकता है।

कौत्स्की लिखते हैं, "शुद्धतः आर्थिक दृष्टि से, यह असंभव नहीं है कि पूंजीवाद एक और मंज़िल से होकर गुज़रे, कार्टेलों की नीति को बढ़ाकर वैदेशिक नीति के क्षेत्र में भी लागू करने की मंज़िल से, अति- साम्राज्यवाद की मंजिल से"*[] अर्थात् महा-साम्राज्यवाद की मंजिल से , उस मंज़िल से जिसमें सारी दुनिया के साम्राज्यवादों के बीच संघर्ष न होकर उनका एक संघ बन जायेगा, वह एक ऐसी मंज़िल होगी जिसमें पूंजीवाद के अंतर्गत युद्ध बंद हो जायेंगे, वह “अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर


  1. * «Die Neue Zeit» १९१४, २ (खंड ३२), पृष्ठ ९२१, ११ सितम्बर, १९१४ । देखिये १९१५, २, पृष्ठ १०७ तथा उसके आगे के पृष्ठ।

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