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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१३३

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के उद्देश्य को) सबसे अच्छा उत्तर यही दिया जा सकता है कि उनकी तुलना वर्तमान विश्व अर्थतंत्र की ठोस आर्थिक वास्तविकताओं के साथ कर ली जाये। अति-साम्राज्यवाद के बारे में कौत्स्की की सर्वथा निरर्थक बातें और बातों के अतिरिक्त उस बहुत ही ग़लत विचार को प्रोत्साहन देती हैं जिससे केवल साम्राज्यवाद के पक्षधरों को बल मिलता है, अर्थात् यह विचार कि वित्तीय पूंजी का शासन विश्व अर्थतंत्र में निहित असमानता तथा विरोधों को कम करता है, जबकि वास्तव में वह उन्हें बढ़ा देता है।

आर० काल्वेर*[] ने अपनी "विश्व अर्थतंत्र की भूमिका" नामक छोटी-सी पुस्तक में उस मुख्य, शुद्धतः आर्थिक तथ्य-सामग्री का सारांश प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है, जिससे हमें उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दियों के संगम पर विश्व अर्थतंत्र के आंतरिक संबंधों का ठोस चित्र प्राप्त हो सकता है। उन्होंने दुनिया को इस प्रकार पांच “मुख्य आर्थिक क्षेत्रों” में विभाजित किया है : (१) मध्य यूरोप (रूस तथा ग्रेट ब्रिटेन को छोड़कर सारा यूरोप); (२) ग्रेट ब्रिटेन; (३) रूस; (४) पूर्वी एशिया; (५) अमेरीका; उन्होंने उपनिवेशों को उन राज्यों के “क्षेत्रों” में शामिल किया है जिनका उन पर आधिपत्य है और कुछ देशों को जिन्हें क्षेत्रों के हिसाब से बांटा नहीं गया है, जैसे एशिया में फ़ारस, अफ़ग़ानिस्तान तथा अरब, अफ्रीका में मोरोक्को तथा अबीसीनिया, आदि, उन्होंने “छोड़ दिया” है।

इन प्रदेशों के बारे में उन्होंने जो आर्थिक तथ्य-सामग्री उद्धृत की है, उसका सारांश यह है :


  1. *R. Calwer, «Einführung in die Weltwirtschaft», बर्लिन, १९०६।

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