पूंजीवादी रंग में रंगे हुए मजदूरों का यह स्तर, “मजदूर अमीरों का यह दल ही, जो अपने रहन-सहन की दृष्टि से, अपनी कमाई की मात्रा की दृष्टि से और अपने दृष्टिकोण में बिल्कुल कूपमंडूक होता है, दूसरी इंटरनेशनल का मुख्य आधार और आज हमारे समय में पूंजीपति वर्ग का सामाजिक (सैनिक नहीं) आधार बना हुआ है। मजदूर वर्ग के आन्दोलन के भीतर ये लोग ही पूंजीपति वर्ग के असली दलाल, मजदूरों में पूंजीपति वर्ग के गुर्गे और सुधारवाद और अंधराष्ट्रवाद के असली वाहक हैं। सर्वहारा वर्ग और पूंजीपति वर्ग के बीच गृह-युद्ध होने पर ये लोग अनिवार्य रूप से , और बड़ी तादाद में, पूंजीपति वर्ग का साथ देते हैं , “कम्यूनारों" के विरुद्ध वे "वार्साइ वालों" के साथ खड़े होते हैं।
जब तक इस प्रक्रिया की आर्थिक जड़ें नहीं समझ ली जाती, और जब तक उसका राजनीतिक और सामाजिक महत्व नहीं पहचान लिया तब तक कम्युनिस्ट आन्दोलन और आनेवाली सामाजिक क्रांति की अमली समस्याओं को हल करने के काम में ज़रा भी आगे नहीं बढ़ा जा जाता सकता।
साम्राज्यवाद सर्वहारा वर्ग की सामाजिक क्रांति की पूर्व-वेला है। यह बात १९१७ के बाद से सारी दुनिया में साबित हो चुकी है।