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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१५

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पिछले पंद्रह या बीस बरसों में, खास तौर से स्पेनिश-अमरीकी युद्ध (१८६८), और अंग्रेज़-बोएर युद्ध (१८९९-१९०२) के बाद से वर्तमान युग का वर्णन करने के लिए दोनों गोलार्द्धों के आर्थिक और राजनीतिक साहित्य में "साम्राज्यवाद" शब्द को अधिकाधिक अपनाया गया है। १९०२ में, एक अंग्रेज़ अर्थशास्त्री, जे० ए० हाबसन की पुस्तक “साम्राज्यवाद" लंदन और न्यूयार्क से प्रकाशित हुई थी। इस लेखक ने, जिसका दृष्टिकोण पूंजीवादी सामाजिक-सुधारवाद और शांतिवाद का है जो कि बुनियादी तौर पर भूतपूर्व मार्क्सवादी, का० कौत्स्की के मौजूदा विचारों से मिलता-जुलता है, साम्राज्यवाद की मुख्य आर्थिक और राजनीतिक विशेषताओं का बहुत अच्छा और विस्तृत वर्णन किया है। १९१० में वियना में आस्ट्रिया के मार्क्सवादी रुडोल्फ़ हिल्फ़र्डिंग की “वित्तीय पूंजी" नामक पुस्तक (रूसी संस्करण : मास्को, १९१२) प्रकाशित हुई थी। बावजूद इसके कि उसमें लेखक ने द्रव्य के सिद्धांत के बारे में ग़लती की है और किसी हद तक मार्क्सवाद तथा अवसरवाद को मिलाने की प्रवृत्ति दिखलायी है, इस पुस्तक में “पूंजीवादी विकास की नवीनतम अवस्था" की, जो कि इस पुस्तक का उप-शीर्षक है, बहुत ही मूल्यवान सैद्धान्तिक व्याख्या मिलती है। वास्तव में पिछले कुछ वर्षों में साम्राज्यवाद के बारे में जो कुछ भी कहा गया है, खास तौर से अनेकों पत्रिकाओं तथा अखबारों के लेखों में, और प्रस्तावों में - उदाहरण के लिए, १६१२ की शरद ऋतु में होनेवाली चेमनित्ज़ और बसेल की कांग्रेसों के प्रस्तावों में - वह इन विचारों से , यानी, उपरोक्त

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