पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१४७

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रहेंगे ताकि उसका उपभोग यूरोप में कर सकें। परिस्थिति इतनी ज्यादा जटिल है, विश्व-शक्तियों की पारस्परिक क्रिया इतनी ज्यादा अज्ञेय है कि भविष्य के बारे में इस या किसी दूसरी कल्पना विशेष के संभव होने के बारे में निश्चय के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता; परन्तु आज पश्चिमी यूरोप का साम्राज्यवाद जिन प्रभावों के अधीन है वे इसी दिशा में जा रहे हैं और यदि उनका मुकाबला न किया जायेगा या उनकी दिशा को मोड़ा न जायेगा, तो वे इसी परिणति की ओर बढ़ते रहेंगे।"*[१]

लेखक का कहना बिल्कुल ठीक है: यदि साम्राज्यवाद की शक्तियों का मुकाबला न किया गया तो वे ठीक उसी लक्ष्य की ओर बढ़ेंगी जिसका कि लेखक ने वर्णन किया है। वर्तमान साम्राज्यवादी परिस्थिति में "यूरोप के संयुक्त राज्य" के महत्व का मूल्यांकन सही-सही किया गया है। परन्तु उन्हें इतना और कह देना चाहिए था कि मज़दूर वर्ग के आंदोलन के भीतर भी अवसरवादी, जो इस समय अस्थायी तौर पर अधिकांश देशों में विजयी हो गये हैं, सुव्यवस्थित तथा अडिग रूप से इसी दिशा में "काम कर रहे" हैं। साम्राज्यवाद, जिसका अर्थ दुनिया का बंटवारा और चीन के अतिरिक्त अन्य देशों का भी शोषण है, जिसका अर्थ है कि इने-गिने बहुत धनवान देशों को बहुत ऊंचे इजारेदारी मुनाफ़े मिलें, सर्वहारा वर्ग के उच्चतर स्तरों को रिश्वत खिलाने की आर्थिक संभावना उत्पन्न करता है और इस प्रकार अवसरवाद का पोषण करता है, उसे एक निश्चित रूप देता है और उसे मजबूत करता है। परन्तु हमें उन शक्तियों की ओर से ध्यान नहीं हटने देना चाहिए जो आम तौर पर साम्राज्यवाद का और खास तौर पर अवसरवाद का मुकाबला


  1. * हाबसन, पहले उद्धृत की गयी पुस्तक, पृष्ठ १०३, २०५, १४४, ३३५, ३८६।
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