पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१४८

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करती हैं, और स्वाभाविक ही है कि सामाजिक-उदारवादी हाबसन इन शक्तियों को देख नहीं पाते।

जर्मन अवसरवादी गेरहर्ड हिल्देब्रांड ने, जिन्हें साम्राज्यवाद का समर्थन करने के कारण पार्टी से निकाल दिया गया था और जो आज जर्मनी की तथाकथित "सामाजिक-जनवादी" पार्टी के नेता बन सकते हैं, अफ़्रीका के हब्शियों के ख़िलाफ़, "महान इस्लामी आंदोलन" के ख़िलाफ़, "शक्तिशाली सेना तथा नौ-सेना" कायम रखने के लिए, "चीनी-जापानी एकता" के ख़िलाफ़ और इसी तरह के अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए "संयुक्त" कार्रवाई के उद्देश्य से "पश्चिमी यूरोप के संयुक्त राज्य" (रूस को छोड़कर) का समर्थन करके हाबसन की बात की बड़े अच्छे ढंग से पूर्ति कर दी है।*[१]

शुल्ज़े-गैवर्नित्ज़ की पुस्तक में "ब्रिटिश साम्राज्यवाद" का जो विवरण मिलता है उससे भी इन्हीं परजीवी प्रवृत्तियों का पता चलता है। १८६५ और १८९८ के बीच ग्रेट ब्रिटेन की राष्ट्रीय आय लगभग दुगनी हो गयी, और इसी काल में "विदेशों से" होनेवाली आय नौगुनी बढ़ी। जबकि साम्राज्यवाद का "गुण" इस बात में है कि वह "हब्शियों को उद्योग की आदतें सिखा देता है" (ज़ाहिर है, बलप्रयोग के बिना नहीं...), तो साम्राज्यवाद की "खतरनाक बात" यह है कि "यूरोप शारीरिक श्रम का बोझ—पहले कृषि तथा खानों के काम का और फिर उद्योगों के ज़्यादा मोटे काम का—काली जातियों के कंधों पर डाल देगा और स्वयं सूदखोर बनकर संतुष्ट हो जायेगा और इस प्रकार वह, शायद, पहले काली और लाल जातियों की आर्थिक मुक्ति


  1. * Gerhard Hildebrand, «Die Erschütterung der Industrieherrschaft und_des Industriesozialismuss» (उद्योगवाद तथा औद्योगिक समाजवाद के शासन का चकनाचूर होना—अनु॰), १९१०, पृष्ठ २२९ तथा उसके आगे के पृष्ठ।

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