तथा आयात व्यापार को लेते हैं। पता यह चलता है कि यह निर्यात तथा आयात व्यापार ब्रिटेन के कुल वैदेशिक व्यापार की तुलना में कम बढ़ा है। इससे कौत्स्की यह निष्कर्ष निकालते हैं कि "हमारे लिए यह मान लेने का कोई कारण नहीं है कि सैनिक आधिपत्य के बिना केवल आर्थिक तत्वों की क्रिया के फलस्वरूप मिस्र के साथ ब्रिटेन के व्यापार में कम वृद्धि होती।" "पूंजी की फैलने की प्रवृत्ति को... साम्राज्यवाद के हिंसात्मक तरीकों से नहीं बल्कि शांतिपूर्ण जनवाद द्वारा सबसे अधिक प्रोत्साहन मिल सकता है।"*[१]
कौत्स्की की यह दलील, जिसे उनके रूसी अलमबरदार (और सामाजिक-अंधराष्ट्रवादियों के रूसी संरक्षक) मि॰ स्पेक्तातोर11 हर सुर में दोहराते हैं, साम्राज्यवाद की कौत्स्कीवादी आलोचना का आधार है और इसलिए हमें उसपर अधिक विस्तारपूर्वक विचार करना चाहिए। हम सबसे पहले हिल्फ़र्डिंग का एक उद्धरण देंगे जिनके निष्कर्षों के बारे में कौत्स्की ने कई मौकों पर, और विशेष रूप से अप्रैल १९१५ में, यह कहा है कि उन्हें "लगभग सभी समाजवादी सिद्धांतवेत्ताओं ने एकमत होकर स्वीकार कर लिया है।
हिल्फ़र्डिंग लिखते हैं, "यह सर्वहारा वर्ग का काम नहीं है कि वह स्वतंत्र व्यापार के बीते हुए युग की नीति तथा राज्य के प्रति विरोध की नीति के साथ अधिक प्रगतिशील पूंजीवादी नीति की तुलना करे। वित्तीय पूंजी की आर्थिक नीति के जवाब में, साम्राज्यवाद के जवाब में सर्वहारा वर्ग को स्वतंत्र व्यापार को नहीं बल्कि समाजवाद को पेश करना चाहिए। सर्वहारा नीति का लक्ष्य अब खुली प्रतियोगिता को
- ↑ * Kautsky, «Nationalstaat, imperialistischer Staat und Staatenbund» (जातीय राज्य, साम्राज्यवादी राज्य और राज्यों का संघ—अनु॰), नूरेनबर्ग १९१५, पृष्ठ ७२ तथा ७०।
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