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सचमुच, यह मार्क्स का ज़बर्दस्त "खंडन" है, जो मार्क्स के नपे-तुले वैज्ञानिक विश्लेषण से एक क़दम पीछे हटकर सेंट-साइमन की अटकलबाज़ी की शरण लेता है, वह एक मेधावी पुरुष की अटकलबाज़ी ही सही, पर है तो अटकलबाज़ी ही।
लेखन-काल : जनवरी–जून १९१६।
मूलतः पुस्तिका के रूप में पेत्रोग्राद से अप्रैल १९१७ में प्रकाशित हुई | | व्ला॰ इ॰ लेनिन, संग्रहीत रचनाएं, चौथा रूसी संस्करण, खंड २२, पृष्ठ १७३-२९० |