पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/२२

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की बुनियाद पर खड़े होनेवाले बड़े-बडे कारखानों के मुक़ाबिले में टिकने के लिए हर नया कारखाना ज़रूरत से इतना ज्यादा फ़ालतू माल पैदा करेगा कि उसे वह या तो मुनाफ़े के साथ केवल तब निकाल सकेगा जबकि उस माल की मांग बहुत ज्यादा बढ़ जाये, या फिर उस फ़ालतू माल की वजह से क़ीमतें इतनी कम हो जायेंगी कि उस नये कारखाने और दूसरे इजारेदारी संघों, दोनों को घाटा पहुंचेगा।" दूसरे देशों से भिन्न, जहां रक्षात्मक चुंगियों के कारण कार्टेल बनाने में आसानी होती है, इंगलैंड में कारखानेदारों की इजारेदारी गुटबन्दियां, अधिकतर तभी पैदा होते हैं जबकि प्रतियोगिता करनेवाले कारोबारों की संख्या केवल “कुछ दर्जन के लगभग" रह जाती है। "बड़े उद्योग के क्षेत्र में इजारेदारियों के बनने पर संकेंद्रण की क्रिया का क्या असर पड़ता है, यह चीज़ यहां पर आइने की तरह साफ़ नज़र आती है ।"*[१]

पचास वर्ष पहले जब मार्क्स “पूंजी" लिख रहे थे, तब खुली . प्रतियोगिता अधिकांश अर्थशास्त्रियों को एक “प्राकृतिक नियम" जान पड़ती थी। सरकारी विज्ञान ने चुप्पी साधने का षड्यंत्र करके मार्क्स के ग्रंथों की हत्या करने की कोशिश की, जिन्होंने पूंजीवाद का ऐतिहासिक और सैद्धांतिक विश्लेषण करके यह दिखलाया कि खुली प्रतियोगिता से उत्पादन का संकेंद्रण पैदा होता है जिससे आगे चलकर, विकास की एक खास मंज़िल में, इजारेदारियों का जन्म होता है। आज इजारेदारी एक वास्तविकता बन गयी है। अर्थशास्त्री अब लिख-लिखकर किताबों के पहाड़ खड़े कर रहे हैं जिनमें वे इजारेदारी के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हैं, और साथ ही वे एक स्वर से यह भी घोषणा करते जाते हैं कि "मार्क्सवाद का खंडन हो गया"। पर वास्तविकता जैसा


  1. *Hermann Levy, «Monopole, Kartelle und Trusts», Jena, 1909, SS. 286, 290, 298.

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