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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/३३

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अब ऐसी मंज़िल में आ पहुंचा है जब कि यद्यपि "राज" माल के उत्पादन का ही रहता है और वही आर्थिक जीवन का आधार माना जाता है, किन्तु , वास्तव में उसकी जड़ें खोखली हो चुकी हैं और अधिकांश मुनाफ़ा रुपये-पैसे की जोड़-तोड़ करनेवाले फ़रेबी “उस्तादों" की जेब में पहुंचता है। इन धोखेबाजियों और जोड़-तोड़ की बुनियाद में ऐसा उत्पादन है जिसका सामाजीकरण हो गया है; किन्तु मानवता की इस विशाल उन्नति से जिससे यह सामाजीकरण संभव हुआ है, फ़ायदा होता है ... सट्टेबाज़ों को। इस बात पर हम बाद में विचार करेंगे कि किस प्रकार इन्हीं कारणों से" पूंजीवादी साम्राज्यवाद के प्रतिक्रियावादी और निम्न-पूंजीवादी आलोचक खुली", "शांतिपूर्ण" और "ईमानदार" प्रतियोगिता में वापस लौट जाने के सपने देखते हैं !

केस्टनर लिखते हैं : "कार्टेलों के बनने से क़ीमतों का दीर्घ काल के लिए बढ़ाया जाना अभी तक सिर्फ उत्पादन के सबसे महत्वपूर्ण साधनों के बारे में, विशेष करके कोयला, लोहा और पोटाशियम के बारे में ही , देखा गया है, लेकिन तैयार माल के सम्बन्ध में यह बात कभी नहीं देखी गयी है। इसी तरह, इस प्रकार कीमतों को बढ़ाने से मुनाफे में होनेवाली बढ़ती भी केवल उन्हीं उद्योगों तक सीमित रही है जो उत्पादन के साधनों को पैदा करते हैं। इस अवलोकन के साथ ही हम यह भी जोड़ दें कि उन उद्योगों को, जो कच्चे माल को (आधे तैयार माल को नहीं ) तैयार करते हैं , कार्टेल बनने से तैयार माल के उद्योगों के हितों की बलि देकर अधिक मुनाफ़ों की शक्ल में लाभ ही नहीं पहुंचता है, बल्कि उन्होंने तैयार माल के उद्योगों के मुकाबले में एक प्रभुत्वपूर्ण स्थान भी प्राप्त कर लिया है, जो बात कि खुली प्रतियोगिता के ज़माने में नहीं थी।"*[]

जिन शब्दों पर हमने जोर दिया है वे इस मामले के सार को


  1. *केस्टनर, पहले उद्धृत की गयी पुस्तक , पृष्ठ २५४ ।

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