प्रगट कर देते हैं जिसको पूंजीवादी अर्थशास्त्री इतना कम और इतनी अनिच्छा से मानते हैं , और जिससे अवसरवाद के आजकल के समर्थक , का० कौत्स्की की अगुवाई में, बचने की और पल्ला छुड़ाने की इतने जोरों से कोशिश करते हैं। प्रभुता और उसके साथ-साथ चलनेवाली हिंसा- “पूंजीवादी विकास की नवीनतम अवस्था के लाक्षणिक संबंध ऐसे ही हैं; सर्वशक्तिमान आर्थिक इजारेदारियों के बनने से अनिवार्य रूप में यही परिणाम हो सकता था और यही परिणाम हुआ भी है।
कार्टेलों द्वारा काम में लाये जानेवाले उपायों का एक उदाहरण हम और देंगे। कार्टेलों का उदय और इजारेदारियों का बनना वहां बेहद आसान होता है जहां कच्चे माल के सभी या मुख्य स्रोतों पर कब्ज़ा करना संभव हो। किन्तु यह मान लेना ग़लत होगा कि जिन उद्योगों में कच्चे माल के स्रोतों को हथिया लेना असंभव होता है, उनके अन्दर इजारेदारियां पैदा ही नहीं होतीं। उदाहरण के लिए, सीमेन्ट उद्योग के लिए कच्चा माल सब जगह मिल सकता है। तो भी जर्मनी में यह उद्योग पूरी तरह कार्टेलों में जकड़ा हुआ है। सीमेन्ट बनानेवालों ने प्रादेशिक सिंडीकेट - जैसे दक्षिण जर्मनी का सिंडीकेट , राइन-वेस्टफ़ालिया का सिंडीकेट - आदि कायम कर लिये हैं। वे जो कीमतें तै करते हैं वे इजारेदारी कीमतें होती हैं : जैसे रेल के एक डिब्बे के लिए २३० से लगाकर २८० मार्क तक जबकि उसकी लागत सिर्फ़ १८० मार्क होती है। कारखाने १२ से १६ फीसदी तक डिवीडेन्ड देते हैं और हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि आधुनिक सट्टेबाजी के "उस्ताद" अच्छी तरह जानते हैं कि डिवीडेन्ड के रूप में उन्हें जो कुछ मिलता है उसके अलावा और भी मोटा मुनाफ़ा किस तरह हथियाया जाता है। ऐसे मुनाफ़ेवाले उद्योग में प्रतियोगिता बंद करने के लिए इजारेदार तरह-तरह की तिकड़में भी करते हैं : वे अपने उद्योग की बुरी हालत के बारे में झूठी अफ़वाहें फैलाते हैं, अखबारों में बिना किसी का नाम दिये हुए
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