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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/३५

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चेतावनियां निकाली जाती हैं, जैसे : “पूंजीपतियो, सीमेन्ट के उद्योग में अपनी पूंजी मत लगाओ!" अंत में , वे लोग “बाहरवालों" के (सिंडीकेट से बाहरवालों के) कारखानों को खरीद लेते हैं, और उन्हें ६०,००० -८०,००० और यहां तक कि १,५०,००० मार्क तक “मुआवजा" दे देते हैं।*[] इजारेदारी हर जगह “छोटी-सी" रकम देकर प्रतियोगियों को खरीद लेने से लेकर उनके खिलाफ़ बारूद का "इस्तेमाल" करने के अमरीकी तरीके तक किसी भी उपाय के बारे में कोई संकोच किये बिना हर जगह अपने लिए रास्ता साफ़ कर लेती है।

यह कथन कि कार्टेल संकटों को खत्म कर सकते हैं, पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों की फैलायी हुई मनगढ़ंत कहानी है जो हर कीमत पर पूंजीवाद को अच्छे रूप में दिखाने के लिए उत्सुक रहते हैं। इसके विपरीत , जब उद्योगों की कुछ खास शाखाओं में इजारेदारी पैदा हो जाती है तो वह समूचे पूंजीवादी उत्पादन में छिपी हुई अराजकता को और भी बढ़ा देती है तथा गहरा कर देती है। कृषि और उद्योगों के विकास की विषमता जो पूरे पूंजीवाद की एक विशेषता है, बढ़ जाती है। कार्टेलों में सबसे अधिक जकड़े हुए उद्योगों की , तथाकथित भारी उद्योगों की, विशेषकर लोहे और कोयले की विशेष अधिकारपूर्ण स्थिति उत्पादन के दूसरे क्षेत्रों में “व्यवस्थित संगठन को और भी कम कर देती है" - जैसा कि जीडेल्स नाम लेखक ने , जिसने “ उद्योगों के साथ जर्मनी के बड़े बैंकों के सम्बंध" पर एक श्रेष्ठतम ग्रंथ लिखा है, स्वीकार किया है।


  1. *L. Eschwege, «Die Barks पत्रिका में Zement (सीमेंट), १९०९, खण्ड १, पृष्ठ ११५ तथा उसके आगे के पृष्ठ ।
  2. ** Jeidels, «Das Verhältnis der deutschen Grossbanken zur Industrie mit besonderer Berücksichtigung der Eisenindustriev (उद्योगों के साथ जर्मनी के बड़े बैंकों के संबंध, विशेष रूप से लोहा उद्योग के प्रसंग में - अनु०), Leipzig, 1905, पृष्ठ २७१।

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