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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/७

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फ्रांसीसी और जर्मन संस्करणों की भूमिका

जैसा कि रूसी संस्करण की भूमिका में बताया गया था, यह पुस्तक १६१६ में जारशाही के सेंसर को ध्यान में रखकर लिखी गयी थी। इस समय मैं पूरी पुस्तक का संशोधन नहीं कर सकता और न शायद यह ज़रूरी ही है, क्योंकि इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य उस समय भी यही था और आज भी है, कि अकाट्य पूंजीवादी के संक्षिप्त परिणामों और तमाम देशों के पूंजीवादी विद्वानों द्वारा खुद मानी हुई बातों के आधार पर बीसवीं शताब्दी के शुरू में - पहले साम्राज्यवादी युद्ध की पूर्व-वेला में- विश्व पूंजीवादी व्यवस्था की पूरी तस्वीर, उसके तमाम अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के साथ पेश की जाये।

यह पुस्तिका, जो जारशाही सेंसर की दृष्टि से कानूनी थी, इस दृष्टि से उन्नत पूंजीवादी देशों के अनेक कम्युनिस्टों के लिए कुछ हद तक लाभदायक भी सिद्ध होगी कि कम्युनिस्टों के लिए आज जो भी थोड़ी-बहुत क़ानूनी सुविधा बच रही है - जैसे कि हाल ही में कम्युनिस्टों की सामूहिक गिरफ्तारियों के बाद वर्तमान अमरीका और फ्रांस के अन्दर- उसका सामाजिक- शान्तिवादी विचारों और "विश्व जनवाद" की उम्मीदों के निपट खोखलेपन को समझाने के लिए इस्तेमाल करने की संभावना- और ज़रूरत- को वे इस पुस्तक के उदाहरण से समझेंगे। सेंसर की हुई इस किताब में जो कुछ जोड़ना अत्यंत आवश्यक है उसे मैं इस भूमिका में पेश करने की कोशिश करूंगा।