सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

इस प्रकार बीसवीं शताब्दी का प्रारंभ उस मोड़ का द्योतक है जहां से पुराना पूंजीवाद नये पूंजीवाद की दिशा में, आम तौर पर पूंजी का प्रभुत्व वित्तीय पूंजी के प्रभुत्व की दिशा में मुड़ गया।

३. वित्तीय पूंजी तथा वित्तीय अल्पतंत्र

हिल्फ़र्डिंग लिखते हैं, "उद्योगों में लगी हुई पूंजी में उस भाग का अनुपात निरंतर बढ़ता जाता है जिसपर उसका उपयोग करनेवाले उद्योगपतियों का स्वामित्व नहीं होता। वे केवल बैंकों के माध्यम से ही उसका उपयोग कर पाते हैं, जो कि उनके लिए पूंजी के मालिक होते हैं। दूसरी ओर बैंक को अपनी निधि का अधिकाधिक भाग उद्योगों में लगाना पड़ता है। इस प्रकार बैंकपति निरंतर बढ़ती हुई हद तक एक प्रौद्योगिक पूंजीपति में परिवर्तित होता जाता है। बैंक की इस पूंजी को, अर्थात् उस पूंजी को जो द्रव्य के रूप में होती है, जो इस प्रकार वास्तव में औद्योगिक पूंजी में परिवर्तित हो जाती है, मैं 'वित्तीय पूंजी' कहता हूं। "वित्तीय पूंजी वह पूंजी होती है जिसपर नियंत्रण बैंकों का रहता है और जिसे इस्तेमाल उद्योगपति करते हैं।"*[]

यह परिभाषा इस एतबार से अधूरी है कि इसमें एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है : उत्पादन तथा पूंजी के संकेंद्रण का इस हद तक बढ़ना जहां पहुंचकर इस संकेंद्रण की परिणति इजारेदारी में होती है, और हुई भी है। परन्तु अपनी पूरी पुस्तक में, विशेष रूप से जिस अध्याय से यह परिभाषा ली गयी है उससे पहलेवाले दो अध्यायों में, हिल्फ़र्डिंग ने पूंजीवादी इजारेदारियों की भूमिका पर जोर दिया है।

उत्पादन का संकेंद्रण ; उससे उत्पन्न होनेवाली इजारेदारियां ; बैंकों का उद्योगों के साथ मिल जाना या उनका एक दूसरे में विलीन हो


  1. *रु० हिल्फ़र्डिंग, " वित्तीय पूंजी", मास्को, १९१२, पृष्ठ ३३८-३३९ ।

६२