शकर ट्रस्ट ने इजारेदारी कीमतें निश्चित की जिसके फलस्वरूप उसे इतना मुनाफ़ा हुआ कि वह "पानी मिलाकर" सात-गुनी बढ़ा ली गयी पूंजी पर १० प्रतिशत , अर्थात् स्थापना के समय लगायी गयी वास्तविक पूंजी पर लगभग ७० प्रतिशत डिवीडेंड दे सका! १९०९ में शकर ट्रस्ट की पूंजी ६,००,००,००० डालर थी। बाईस वर्ष में उसने अपनी पूंजी दस-गुनी से अधिक बढ़ा ली थी।
फ्रांस में “वित्तीय अल्पतंत्र" के प्रभुत्व ने जो रूप धारण किया वह इससे थोड़ा ही भिन्न था ( लीजिस द्वारा लिखित “फ्रांस में वित्तीय अल्पतंत्र के खिलाफ़" इस विख्यात पुस्तक का पांचवां संस्करण १९०८ में प्रकाशित हुआ था)। बांड जारी करने के मामले में वहां के चार सबसे शक्तिशाली बैंकों की आपेक्षिक नहीं बल्कि "पूर्ण इजारेदारी" है। वास्तव में यह "बड़े बैंकों का ट्रस्ट" है । और इजारेदारी के कारण बांड जारी करने से इजारेदारी मुनाफ़े सुनिश्चित हो जाते हैं । आम तौर पर ऋण लेनेवाले देश को ऋण की रक़म के ९० प्रतिशत भाग से अधिक नहीं मिलता , शेष १० प्रतिशत बैंकों तथा अन्य दलालों को चला जाता है। बैंकों को ४०,००,००,००० फ्रांक के रूसी-चीनी ऋण से जो मुनाफ़ा हुआ वह ८ प्रतिशत था ; ८०,००,००,००० फ्रांक के रूसी (१९०४) ऋण से १० प्रतिशत मुनाफ़ा हुआ ; और ६,२५,००,००० फ़्रांक के मोरोक्को के (१९०४) ऋण से १८.७५ प्रतिशत मुनाफ़ा हुआ। पूंजीवाद ने अपना विकास बहुत थोड़ी-सी सूदखोरी की पूंजी से प्रारंभ किया था और वह अपने विकास का अंत सूदखोरी की विपुल पूंजी के साथ कर रहा है। लीजिस ने कहा है : “फ्रांसीसी यूरोप के सूदखोर हैं ।” पूंजीवाद के इस रूपांतरण के कारण आर्थिक जीवन की सभी परिस्थितियों में गंभीर परिवर्तन हो रहे हैं। जनसंख्या में कोई कमी-बढ़ती न होने और उद्योग, वाणिज्य तथा जहाजरानी में गतिरोध आ जाने की दशा में "देश" सूदखोरी से अमीर बन सकता
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