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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/७६

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पर बांटा जाता है और आगे चलकर भी उसका हिसाब इस प्रकार घटायी गयी पूंजी के आधार पर ही लगाया जाता है। या यदि उसकी आमदनी कुछ भी नहीं रह गयी है तो नयी पूंजी जुटायी जाती है जो भविष्य में पुरानी और कम लाभप्रद पूंजी के साथ मिलकर काफ़ी मुनाफ़ा दिला सकती है।” आगे चलकर हिल्फ़र्डिंग लिखते हैं, “बैंकों के लिए इन तमाम पुनःसंगठनों तथा पुनर्निर्माणों का दोहरा महत्व होता है: पहले तो यह कि ये सौदे लाभप्रद होते हैं; और दूसरे, उनसे संकट में फंसी हुई कम्पनियों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का मौका मिल जाता है।"*[]

एक उदाहरण देखिये। डार्टमंड की यूनियन माइनिंग कम्पनी की स्थापना १८७२ में हुई थी। शेयरों से लगभग ४,००,००,००० मार्क की रक़म की पूंजी जुटायी गयी थी और पहले वर्ष १२ प्रतिशत का डिवीडेंड देने के बाद बाज़ार में शेयरों की कीमत बढ़कर १७० हो गयी। वित्तीय पूंजी ने सारी मलाई हड़प कर ली और उसने कोई २,८०,००,००० मार्क की तुच्छ रकम कमायी। इस कम्पनी को खड़ा करने में मुख्य हाथ उस बहुत बड़े जर्मन बैंक «Disconto-Gesellschaft» का था जिसने इतनी सफलतापूर्वक ३०,००,००,००० मार्क की पूंजी खड़ी कर ली थी। बाद में यूनियन माइनिंग कम्पनी के डिवीडेंड घटते-घटते कुछ नहीं रह गये : शेयरहोल्डरों को पूंजी “गिरा देने" पर राजी होना पड़ा, अर्थात् सब कुछ खो देने से बचने के लिए उन्हें उसका कुछ भाग खो देने पर राजी होना पड़ा। (“पुनर्निर्माणों" के एक पूरे क्रम द्वारा तीस वर्षों में यूनियन कम्पनी के खातों से ७,३०,००,००० मार्क की रकम काट दी गयी। "इस समय कम्पनी के मूल शेयरहोल्डरों के पास अपने


  1. *" वित्तीय पूंजी", पृष्ठ १७२।

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