फिर छोटे-छोटे मालिकों तथा मजदूरों की तबाही आती है जिन्हें इन फ़र्जी इमारती कम्पनियों से कुछ भी नहीं मिलता, इमारती ज़मीन के टेंडर और इमारतें बनाने के लाएसेंस जारी करने पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए बर्लिन की "ईमानदार" पुलिस तथा प्रशासन-व्यवस्था के साथ जालसाज़ी के सौदे होते हैं , आदि, आदि ।*[१]
"अमरीकी नैतिकता", जिसकी कि यूरोप के प्रोफेसर तथा नेकनीयत पूंजीपति इतनी मक्कारी के साथ निंदा करते हैं , वित्तीय पूंजी के युग में हर देश के हर बड़े शहर की नैतिकता बन गयी है।
१९१४ के आरंभ में बर्लिन में एक "यातायात ट्रस्ट" बनाने की , अर्थात् बर्लिन की तीन यातायात कम्पनियों के बीच - नगर की बिजली की रेल , ट्राम कम्पनी और बस कम्पनी के बीच - “हितों का ऐक्य" स्थापित करने की चर्चा थी। «Die Bank» ने लिखा, "जब से इस बात का पता चला कि बस कम्पनी के अधिकांश शेयर बाक़ी दोनों कम्पनियों ने खरीद लिये हैं तब से हमें मालूम है कि इस प्रकार की योजना की बात सोची जा रही है। जो लोग इस उद्देश्य को लेकर चल रहे हैं उनकी इस बात पर हम पूरी तरह विश्वास करने को तैयार हैं कि यातायात सेवाओं को एक में मिलाकर वे बचत करेंगे जिसका कुछ भाग आगे चलकर पब्लिक को फ़ायदा पहुंचायेगा। परन्तु इस बात में इस हक़ीक़त के कारण कुछ पेचीदगी पैदा हो गयी है कि जो यातायात ट्रस्ट बनाया जा रहा है उसके पीछे बैंकों का हाथ है, और यदि वे चाहें तो वे यातायात के इन साधनों को, जिनपर उन्होंने अपनी इजारेदारी कायम कर ली है, जमीन के टुकड़ों के अपने व्यापार के
- ↑ * «Die Bank» में, १९१३, पृष्ठ ९५२ । L. Eschwege, «Der Sumpf» (“ दलदल" - अनु०), उपरोक्त , १९१२, १, पृष्ठ २२३ तथा उसके आगे के पृष्ठ।
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