पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१३४

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[ १३३ ] सारंग चारि ॥ ससि मग फनिग धुनिग दोउ अंग अंग सारंग को अनुहारी॥ तामें एक अवर सुत सारंग बोलकबहुरि बिचारि। परकत एक नाम है दोज किधौं पुरुष किधों नारि॥ ढाकति कहाँ प्रेम हित सुंदरि सारँगनेक उघारि। सूरदास प्रभु मोहे रूपहिसारंग बदननिहारि॥१७॥ सारंग इति । सषी की उक्ति नाइका सों। सारंग दीप ताको रिपु पट ताकी ओट दुरि रहै हैं चारि सारंग ससि १ मृग ? फनिग १ धुनिग १ सो तिन में जो दो सारंग हैं ते अंग अंगी के अनुहार हैं । मुष मृग अंग नेत्रन ने सारंग जो कमल ताकी अनुहार मुष कमल बरनन है। औ गन को कमल बरनन है औ तामें एक और सारंग को सुत है सारंग नाम कोकिला तदवत वाणी सुत कहने से अति मधुर बोलै है अरु परकृत एक सप बेनी सो तामें उपमा दोनों की है सर्प अरु सर्पिनी की सो ढाकत काहे है ए चारों चार सारंगऊ उघार सूरदास मोहै है तिन को सारंग नाम चंद तिन को निहार ॥ १७॥ राग बिलावल। तें जुनील पट ओट दियोरी। सुनि राधिका स्यामसंदर सों बिनहि काज अति रोस कियोरी ॥ जलसुत विंब मनहु जलराजत मनहुं सरदससि राहु लियोरी। भूमिघिसनि किधों कनकषंभ चढि मिलि रस ही रस अमृत पियोरी॥