[१३४ ] तुम अति चतुर सुजान राधिका कत राष्यौ भरि मानु हियोरी । सूरदास प्रभु अंग अंग नागरि मनो काम कियो रूप वियोरी ॥१८॥ ...तें जो इति । सपी की उक्ति नायका सों। हे नायके तैं जो नील पट ओट कियो है अरु बिन अपराध रोस कियो है नायक सों नीलपट कैसो लगे है मानो जलसुत कमल ताको विंव जल में परो है कै सरदचंद राहु ने ग्रस्यो है अरु भूघिसन सर्प अथवा जमुना सो कनकषंभ पर चढि के रसे रसे मानो अमृत पान करै है तू अति चतुर है काहे को मान ही में भरि राष्यो है। सूर प्रभु अंग अंग नागर प्रवीन कैसे है जैसे दूसरो काम ॥ १८॥ राग नट । - राधे तेरे रूप की अधिकाई। जो उपमा दीजे तेरे तन तामें छबि न समाई ॥ सिंघ सचि सर विथा मरति दिन बिन सोडू नीर सुकाई। ससि उर चढत प्रेम पावक परि बंक कुसुम्म रहे कुन्हिलाई ॥ दूभ तूटत अरु अरुन पंक भए विधिना आन बनाई। कट्ठज पैसि पतालै लै रहे पगपति हरि बाहन भये जाई॥ हंस दुर्यो सर दुर्यो सरोरुह गज मग चले पराई । सूरदास TERIA
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