पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१३८

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चंद ताको प्रकास है सो तेरे मुष ते गयो है। मारुतसुत हनुमान ताक पति राम ताको रिपु रावन ताकी पुरी लंका तामे बसत है । अगस्त्य तिन को पिता कुंभ ताको बाहन जल सो जल औ भोजन नाहीं सुहाय है। हर कहैं महादेव तिन को पुत्र स्वामिकातिक ताको वाहन मार ताको असन सर्प ताको हित पबन सो आगि सी जरावै है। उदधि सुतापति विष्णु ताको बाहन गरुड ताको नाम वैनतेय वचन से कैसे समुझाऊ धर्म- सुवन युधिष्ठिर ताको वैरी दुर्योधन ताको अवतार दुस्सीलता सो आस बहावै है ॥२१॥ उठि राधे कत रैनि गवाँवै । महि- सुतगति तजि नल सुत तित तजि सिंधुसुतापतिभवन न भावै ॥ अलि- बाहन को प्रीतम बाला ता वाहन रिपु ताहि सतावै । सो निवारि चलि प्रान- पियारी धर्म सुनहि मति भावन पावै॥ सैलसुतासुतबाहन सजनी ता रिपुता मुष सबद सुनावै। सूरदास प्रभु पंथ की महारत तोहि ऐसी हठ क्यौं बनि आवै॥ २२॥ उठि राधे इति । सषी की उक्ति। हे राधे रैनि काहे को गंवावै है महिसुत वृक्ष ताकी गति जड जलसुत जोक ताकी गति ढिठाई ताको छोडि सिंधु सुतापति कृष्ण तिन को घर तोहि नाहीं भाव है । अलि भ्रमर नाको बाहन कमल ताको पीतम समुद्र ताकी बाला गंगा ताके बाहन महादेव तिन को रिपु काम सो ताकों सतावै है हे मानप्यारी सो तूं निवार धर्म जामें नहीं है ऐसो को दुर्योधन ताकी मति मान सोई भाव