पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१५६

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लागत । अरु एक कमल कर तें प्यारी राधा कमल कर पकरो राधा अंग कोमल कमलवत । ऐसे राधा कृष्ण जो जुगल कमल हैं तिन को कमल सुत ब्रह्मा निहारत है । प्रीत जाकी भंग नाही होत । मुष नयन जुगल के तीन सोम दो मुष अरु राधा मुष मुकट में प्रतिबिंब । काहे कृष्ण को मुष नीचे है । बंसी लट काकपक्ष । तीन सुक नासिका बिंब । प्रतिबिंब . राधा के २ कृष्ण एक अरु जे कमल सनकादि को दुर्लभ हैं चरन अरु गंगा निकसी हैं। जिनत ते सरोज । गजि सूर ते देषत अथवा संसार नाही देषत ॥ ४४ ॥ तुम बिन कहो कासों जाय । संभु आयुध उठ करेजे करत बहु बिधिघाय॥ गोपपति लषन के वैरी आन के अकु- लाय । पक्षिराज सुनाथ पतनी भोगिबो चित चाय ॥ पायतोय निहार कबहूं हिलत ना हरषाय । सूर अनभल आन को सुनत वृक्ष बैरि बुताय ॥४५॥ तुम बिन कासों कहों। संभु आयुध सूल घाउ करत । गोपपति नद ताको विसषन नर्क को बैरी आन के देषि अकुलात । पक्षिराज नाथ विष्णु पतनी लक्ष्मी भोगो चाहत पांयतोय गंगा में नाहीं नहात । अनमल आन को सुन वृक्षबैरी अग्नि बुझावत ॥ ४५ ॥ बृज की कही कहा कहु बातें । गिर- तनयापतिभूषन जैसे बिरह जरी दिन रातें ॥ मलिन बसन हरि हेरि हित