पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१६१

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पितु पितु सेनापति पितु ता अरि अंग दहोरि ॥ सारंगसुतधर भष धर बैरी जातन बचन सहोरि । नपत आदि सुत टतीय तलफ कहु को सक राष चहोरि ॥ वाजिनि ते तिथि थान संतोसी सोई बचन कहोरि । जो आपन हित बुज- हित जगहित कुबजा कूर चहोरि ॥ कासाँ कहाँ सुने को मेरो बिपता बोज बहोरि । सूरज प्रभु बिन मोकह बैरी सब सुष जहर भरोरि ॥ ४६॥ ___ उक्ति नायका की अंतरंग सची सों। द्वरावर्त्त कूट व्याघात अलंकार लछित लछना है। भूपन नाम अंगद तिन के पिता वालि तिन के पितु इंद्र तिन के सेनापति सामकार्तिक तिन के पिता सिव तिन को बैरी काम सो अंग जरावे है । सारंग समुद्र ताको सुत चंद ताको धर महादेव तिन को भष बिष ता घर सर्प ताको बैरी मयूर ताको बचन नहीं सहो जाय । नृपत आद की वर्न भू पृथ्वी सुत मंगल ताते तृतीय बृहस्पत तिन को नाम जीव सो तलफै है। वाजिनि अस्विनि ते तिथि थान पंदरह स्थान स्वाति तिन ते संतोस पावे है। पपीहा सो पापी रहै है पिय पिय ताते सुषद को सब दुषद भयो ॥ ४९ ॥